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आर्थिक मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी कांग्रेस

रायपुर | संवाददाता: क्या कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव आर्थिक मुद्दों पर लड़ेगी? कम से कम कांग्रेस पार्टी की तैयारी तो ऐसी ही लग रही है.

माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस के लिये बेरोजगारी, कृषि ऋण माफी तथा न्यूनतम आय की गारंटी प्रमुख रहेंगे. यह कांग्रेस के मुद्दे होंगे जिस पर वह लोगों का ध्यान आकृष्ट कर इसे चुनाव का मुद्दा बनाने की कोशिश करेगी.

इसके अलावा नोटबंदी तथा जीएसटी के नकारात्मक प्रभाव को उजागार करके वह मोदी सरकार पर हमला करेगी.

मंगलवार को गुजरात में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक के बाद हुई रैली में राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी के भाषण से इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. यूं भी लोकसभा चुनाव 2019 के लिये कांग्रेस अपनी रणनीति में खिंच कर भाजपा को उतारने की कोशिश करेगी, यह तो तय है.

दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेस पार्टी इस बार भाजपा द्वारा दिये गये एजेंडे के बदले अपने एजेंडे पर लोकसभा चुनाव 2019 लड़ने का मन बना चुकी है. जहां भाजपा पुलवामा तथा सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर राष्ट्रवाद के सहारे चुनावी नैय्या को पार लगाना चाहती है, वहीं कांग्रेस, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में हुये ताजातरीन विधानसभा चुनावों में किसानों के मुद्दों पर मिली जीत के आधार पर आगे की लड़ाई जारी रखना चाहती है.

लेकिन क्या कांग्रेस देश की जनता को जिन दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है, उसके समाधान के लिये कॉर्पोरेट से भी दो-दो हाथ करने का हौसला रखती है? इस सवाल का जवाब अभी नेपथ्य में है.

अडानी और अंबानी

हालांकि, राफेल खरीदी के मुद्दे पर राहुल गांधी ने पहले से ही अंबानी पर हमलावार रुख अख्तियार किया हुआ है. अंबानी, अडानी के खिलाफ राहुल गांधी बोलते रहे हैं. लेकिन सत्ता में आने के बाद या कांग्रेस जिन राज्यों में सत्ता में है, इन कंपनियों पर अंकुश लगाने की कोशिश करेगी, इसका ठीक-ठीक जवाब तो अभी कांग्रेस पार्टी भी देने की स्थिति में नहीं है.

देश के जो ताजा हालात हैं वो वास्तव में कॉर्पोरेट बनाम किसान तथा आदिवासी के हैं. एक ओर कॉर्पोरेट देश के प्राकृतिक संसाधनों पर कॉर्पोरेट कब्जा करके अपनी संपदा को बढ़ाना चाहता है तो दूसरी ओर किसान-आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं.

कृषि समस्या अब किसानी की समस्या न रह के समाज की समस्या बन गई है. आखिरकार जिस देश की करीब-करीब 70 फीसदी आबादी गांवों में रहती है, वहां किसानी की समस्या को यदि हल नहीं किया जाता है तो समाज का संकट में पड़ना लाजिमी है.

दूसरी तरफ बिजली के नाम पर, कोयले की खदान के नाम पर जिस तरह से आदिवासियों को बेदखल करने की कोशिश की जा रही है, इससे वे सकते हैं. इससे किसानों को भी नुकसान हो रहा है.

दरअसल, इसकी शुरूआत यूपीए-2 सरकार के दौर में ही हो गई थी. कोल-स्कैम इसी श्रेणी का घोटाला था. जिसमें मनमोहन सरकार कॉर्पोरेटों को बचा नहीं सकी थी. यह भी एक कारण रहा है कि कॉर्पोरेटों को लगने लगा था कि मनमोहन सरकार उऩकी लूट को अमलीजामा तो पहना सकती है लेकिन उन्हें बचा नहीं सकती है, इसीलिये उऩका मोहभंग हुआ और वे सत्ता परिवर्तन के माध्यम से अपने मनमाफिक सरकार के विकल्प को तलाशने लगे थे.

भारतीय कॉर्पोरेट की यह खोज आखिरकार तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आकर खत्म हुई थी. यह सच है कि मोदी सरकार के दौर में अंबानी तथा अडानियों की बन आई. इन्होंने अपनी संपदा में बेतहाशा बढ़ोतरी की लेकिन दूसरे कॉर्पोरेट घरानों को क्या मिल पाया यह भी एक शोध का विषय बन गया है.

आज कॉर्पोरेट फिर से विभाजित हो गया है जो 2014 के लोकसभा चुनाव के समय एकबद्ध हो गया था. इसकी झलक इसी से मिल जायेगी कि जिस राहुल गांधी को अधिकतर मीडिया घराने ‘पप्पू’ के रूप में प्रचारित कर रहे थे, वे अब इस तरह के सीधे हमले से बच रहे हैं.

अब रहा सवाल कि कांग्रेस, राष्ट्रवादी जुनून से जनता को बाहर निकाल कर उनके रोजमर्रा के मुद्दों की ओर कितना खींच सकती है ? दूसरी तरफ मोदी के नेतृत्व में भाजपा तथा उसके सहयोगियों की पूरी कोशिश रहेगी कि सरकार के हर काम के सकारात्मक पक्ष को सामने लाया जा सके जिसमें पुलवामा और सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे प्रमुख रहेंगे. कांग्रेस के सामने इस तरह के मुद्दों से मुकाबला एक बड़ी चुनौती होगी.

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