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मेनका गांधी ने खींची ‘लक्ष्मण रेखा’

नई दिल्ली | संवाददाता: मेनका गांधी ने लड़कियों के लिये ‘लक्ष्मण रेखा’ खीच दी है. केन्द्रीय मंत्री तथा भाजपा नेत्री मेनका गांधी ने ऐन महिला दिवस के पहले लड़कियों के लिये ‘लक्ष्मण रेखा’ खीच दी है. बकौल मेनका गांधी जब आप 16-17 साल की उम्र में होते हैं तो हार्मोंस काफी असर करते हैं. हार्मोंस के इस विस्फोट की वजह से होने वाली किसी भी गलती से खुद को रोकने के लिए एक लक्ष्मणरेखा खींचे जाने की जरूरत है. जब लड़कियों ने मेनका से सवाल किया कि ऐसा लड़कों के साथ क्यों नहीं किया जाता? तो मेनका का कहना था कि ये कर्फ्यू स्टूडेंट्स को एक्सिडेंट जैसे दुर्घटनाओं से बचाने के लिये है.

एक चैनल में इंटरव्यू के दौरान केन्द्रीय मंत्री तथा भाजपा नेत्री मेनका गांधी ने कहा कि एक अभिभावक के तौर पर जो भी अपनी बेटी या बेटे को कॉलेज भेजता है, मैं उसकी सुरक्षा की उम्मीद करती हूं. ऐसे में सुरक्षा के कुछ नियम उनके खिलाफ भी हो सकते हैं.

Why Hostels Need Early Curfew: ‘Hormonal Outbursts’ Says Maneka Gandhi

मेनका गांधी के इस इंटरव्यू के बाद सोशल मीडिया पर इसका जमकर विरोध हो रहा है. गौरतलब है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रायें इन दिनों ‘पिजड़ा तोड़’ अभियान चला रही हैं. एस बीच मेनका गांधी का बयान आ गया. इसके विरोध में ‘पिजड़ा तोड़’ अभियान की एक सदस्या ने केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी को यह चिठ्ठी लिखी है.

प्रिय मेनका गांधी जी,

मीडिया और समाज को दी गई आपकी नसीहत के लिए मन से एक ही आवाज़ निकलती है, ‘मोहतरमा, अख़बार खोलिए या गूगल कीजिए- ‘वीमेन स्टूडेंट प्रोटेस्ट’. आपके ख़्यालों पर अनेकों भाषाओं में सैकड़ों छात्राओं की विस्तृत टिप्पणी आपको अपने आप ही मिल जाएगी. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दो-तीन दिन पहले टीवी, अख़बारों और फ़ेसबुक पर, कहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के आन्दोलन में महिलाओं के बड़े तबके की भागीदारी की तस्वीरें थीं, तो कहीं मुंबई यूनिवर्सिटी में आन्दोलन की मांगें पूरी होने पर छात्राओं के संघर्ष में एकजुटता भरे पोस्ट. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में छात्राओं का चल रहा आंदोलन भी बुलंद खड़ा है.

इस महिला दिवस की तैयारी हम इस उत्साह से कर रहे थे कि महिलाओं की आज़ादी और नारीवादी सोच के तर्क-वितर्कों की रेखा में थोड़ा ही सही परिवर्तन तो आया. तभी आपके बयान ने हमें जैसे बचपन की रामायण की कहानियों में फिर धकेल दिया, जहाँ कोई हमें “लक्ष्मण रेखा” का हवाला देकर हमारे दायरे और उनका महत्व समझा रहा हो.

आप उसी सरकार की महिला और बाल कल्याण विकास मंत्री हैं जो ‘महिला सशक्तिकरण’, ‘सेल्फी विद डॉटर’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कैंपेन के ज़रिए महिलाओं के विकास की बात करती है. आपके बयान ने एक बार फिर यह याद दिला दिया कि इन आंशिक सफलताओं के बावजूद हम अब भी एक जाति और वर्ग विभाजित पितृसत्तात्मक समाज में जी रहे हैं, जहाँ लोगों के सोच, अधिकार और आज़ादी के पहरेदार सरकार में ही बैठे हैं.

मंत्री महोदया, हमारे गुस्से के पीछे हमारे ‘हॉरमोंस’ नहीं बल्कि आपकी भेद-भाव पूर्ण सोच है, जो आज शहर-शहर में छात्राओं को संघर्ष के रास्ते पर उतरने को मजबूर कर रही है. साथ ही लक्ष्मण रेखा खींच कर, नस्ल की शुद्धता बरकरार रखने की चिंता को आप शांत कर लें क्योंकि छात्राओं के आन्दोलनों के साथ ही दलित छात्र-छात्राओं का आंदोलन भी कॉलेज दर कॉलेज ज़ोर पकड़ रहा है, और इन आन्दोलनों के बीच बातचीत भी.

रही बात ‘सुरक्षा’ की. सड़कें तो तब सुरक्षित होती हैं जब ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं सड़कों पर होती हैं. जब उन पर अँधेरा नहीं स्ट्रीट लाइट्स होती हैं. न की तब जब यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली महिलाओं के उस तबके को, जिनको हॉस्टल मिला है उसे सात बजे प्रशासन ख़ुद बंद कर दे और दूसरे तबके को सबसे ज़्यादा सुरक्षित होने का दावा करने वाले पीजी ओनर्स भी रात को असुरक्षित बता कर कैद कर लें. फिर जो बहुत कम महिलाएं बचें उनके लिए ऐसा माहौल बना दें कि वे अपनी आज़ादी को अपने होने का दावा कर के भी उसे अपना नहीं पायें.

एक बात तो आपने ठीक कही पर बहुत ख़राब ढंग से कही. आपने कहा, “महिलाओं की सुरक्षा ‘दो बिहारी सिक्योरिटी गार्ड के डंडों’ पर नहीं छोड़ी जा सकती”. हाँ सच है. दो या बीस. बिहारी हों, तमिल हों, पंजाबी हों, आपकी अपनी दिल्ली के हों या ‘आपके अपने देश भारत’ के किसी राज्य के हों. उनको गेट पर खड़ा करने से आज़ादी नहीं मिलेगी, न ही महिलाओं को क़ैद करने से.

मगर आपका ये असम्मानजनक कमेन्ट दर्शाता है कि न ही आप छात्राओं की इज्ज़त करती हैं, न ही देश में आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों की, न ही मेहनत करने वाले लोगों की. अभी तक तो आठ मार्च को आप लोग महिलाओं को छुट्टी देकर, फूलों के गुलदस्ते देकर, कम से कम एक दिन नाममात्र उन्हें “सम्मान” देने की बात करते थे. पर अब शायद आपकी सोच आप ही की बनाई “लक्ष्मण रेखा” के अन्दर अटक गई है.

याद रखिएगा जिस यूनिवर्सिटी में महिलाओं के लिए यह रूढ़िवादी कानून आप बना रही हैं, इनकी नींव ही जाति, वर्ग व्यवस्थित और पितृसत्तात्मक समाज को दी गई सावित्री बाई की चुनौती में पड़ी है. शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी ऐसी तगड़ी संघर्षरत नींव पर बढ़ रही इमारत है.

आपकी संकीर्ण सोच के पिंजड़े इसे क़ैद नहीं कर सकेंगे. आप जो कहिए, जो करिए, हम तो ये पिंजड़े तोड़ेंगे, इतिहास की धारा मोड़ेंगे!

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