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अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति में छत्तीसगढ़ का रिकार्ड ख़राब

नई दिल्ली | संवाददाता: अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने के मामले में छत्तीसगढ़ का रिकार्ड खराब होता जा रहा है. प्रत्यत्र लाभ अंतरण यानी डीबीटी के बाद से स्थितियों में सुधार का दावा किया जा रहा था. लेकिन स्थितियां और खराब होती जा रही हैं. हालांकि राज्य में रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में अल्पसंख्यकों के विकास के लिये कई योजनायें चलाये जाने का दावा किया गया है. लेकिन छात्रवृत्ति के मामले में सरकारी अफसरों की उदासीनता विद्यार्थियों के लिये मुश्किल का सबब बनती जा रही है.

राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे गरीब अल्पसंख्यक छात्र हैं, जो अपनी पढ़ाई के लिये इसी पर निर्भर हैं लेकिन समय पर छात्रवृत्ति नहीं मिलने या छात्रवृत्ति ही नहीं दिये जाने से उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है.

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद दावा किया जा रहा था कि अल्पसंख्यक छात्रों के हितों की रक्षा के लिये मोदी सरकार आवश्यक क़दम उठायेगी लेकिन पूर्ण और अनंतिम आंकड़े बता रहे हैं कि अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृत्ति देने के मामले में स्थिति और कमज़ोर होती चली गई है.

मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति योजना के तहत 2014-15 में वास्तविक लक्ष्य 15,529 के मुकाबले वास्तविक उपलब्धि 19,953 थी लेकिन 2015-16 में वास्तविक लक्ष्य 15,529 के मुकाबले वास्तविक उपलब्धियां 13,363 रह गईं. 2016-17 में यह आंकड़ा और भी निराशाजनक है.

2016-17 में मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति योजना के योजना का वास्तविक लक्ष्य 15,529 के मुकाबले वास्तविक उपलब्धि का आंकड़ा लगभग आधा 7,210 पर ही अटक गया. हालांकि सरकार का तर्क है कि 2016-17 की छात्रवृत्तियों का संवितरण 2017-18 में भी जारी है.

इसी तरह मैट्रिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना के तहत 2014-15 के वास्तविक लक्ष्य 2589 के मुकाबले वास्तविक उपलब्धि 2657 थी, लेकिन अगले ही साल 2015-16 में 2589 के वास्तविक लक्ष्य के मुकाबले वास्तविक उपलब्धि का आंकड़ा कमज़ोर पड़ गया और यह 2204 पर जा कर ठहर गया. 2016-17 के 2589 के वास्तविक लक्ष्य के मुकाबले वास्तविक उपलब्धियां केवल 1880 रही.

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