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मोदी सरकार, बहुत कुछ बाकी

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: मोदी सरकार को अपने चुनावी वादों के अनुसार अभी बहुत कुछ करना बाकी है. पिछले आम चुनाव में भारी बहुमत से केंद्र की सत्ता में पहुंची प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का एक साल पूरा हो गया है, लेकिन चुनाव के दौरान किए वादों का पूरा होना अभी बाकी है. मोदी ने अच्छे दिन के अपने नारे के निमित्त कुछ कदम जरूर उठाए हैं, लेकिन उन कदमों को अभी लंबी डगर तय करनी है.

मोदी का मुख्य जोर देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती पर रहा है. रेलवे अधोसंरचना में 100 प्रतिशत एफडीआई को अनुमति दी तथा बीमा व रक्षा क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाकर 49 प्रतिशत किया. योजना आयोग की जगह नीति आयोग का गठन किया.

मोदी ने सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी कई योजनाएं भी शुरू की. स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री जन धन योजना, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ, बीमा योजनाएं, मिशन इंद्रधनुष जैसी योजनाएं इसमें शामिल हैं. लेकिन संप्रग सरकार द्वारा शुरू की गई सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा के प्रति इस सरकार की थोड़ी उदासीनता भी देखी गई है.

बहरहाल, मोदी द्वारा घोषित इन योजनाओं का असर देखना और दिखना अभी बाकी है. लोग फिलहाल उम्मीद ही लगा सकते हैं.

मोदी ने सालभर में 18 देशों की यात्राएं की हैं. वह जहां भी गए, उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम से विश्व को जोड़ने की अपील की है.

भारत को विनिर्माण हब बनाने के लिए मोदी को कई देशों का साथ भी मिला. जर्मनी के हनोवर मेले में मेक इन इंडिया का जोरदार प्रचार किया गया. भारत में निवेश बढ़ाने के लिए जर्मनी के साथ द्विपक्षीय तंत्र पर सहमति बनी. कनाडा से यूरेनियम की आपूर्ति के लिए भारत ने समझौते किए, जिसके तहत कनाडा भारत को पांच साल तक यूरेनियम देने को तैयार हुआ है. फ्रांस के साथ सामरिक क्षेत्र में समझौते हुए. भारत फ्रांस की कंपनी डसाल्ट से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदेगा. दक्षिण कोरिया के साथ सात समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं.

सरकार ने निवेश लाने और देश को विनिर्माण हब बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढ़ाई है. प्रवासी और ओवरसीज निवेशकों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में राहत दी है. ई-गर्वनेंस की वकालत करने वाले मोदी ने उद्योगों के लिए ई-फॉर्म की शुरुआत की. लेकिन विशेषज्ञों की नजर में इन सब कदमों का अभी बहुत लाभ नहीं हुआ है.

दुग्गल कैपिटल के प्रबंध निदेशक किशोर दुग्गल का कहना है, “देश में विभिन्न क्षेत्रों में ढील देने के बाद भी विदेशी निवेशकों को लुभाने में सरकार असफल ही रही है.”

हालांकि ‘इंडियास्पैंड’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार के प्रथम वर्ष में आठ प्रमुख उद्योगों (कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफायनरी उत्पाद, ऊर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली) की विकास दर 2014-15 में पांच फीसदी रही, जो एक साल पहले 4.2 फीसदी थी.

मोदी ने देश में छोटे उद्योगों और कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए 20,000 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ मुद्रा बैंक की स्थापना की. यह बैंक छोटे उद्योगों को 10 लाख रुपये तक का सस्ता ऋण देगा.

वीनस कैपिटल के सलाहकार के.के मित्तल का कहना है, “मुद्रा बैंक की खासियत यही है कि इससे ठेले और खोमचे वालों को भी ऋण मिल पाएगा.” मुद्रा बैंक के तहत तीन तरह के ऋण (शिशु, किशोर और वयस्क) देने का प्रावधान है.

मोदी सरकार ने अपनी विदेश व्यापार नीति भी स्पष्ट की है. 2015-2020 की विदेश व्यापार नीति में वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात 2013-14 के 466 अरब डॉलर से बढ़ाकर 2020 तक 900 अरब डॉलर किए जाने का लक्ष्य रखा गया है. इससे वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी दो प्रतिशत से बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत करने की है. इसके साथ ही योग को सेवा निर्यात में शामिल करने की वकालत की गई है.

प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को मेक इन इंडिया अभियान की घोषणा की थी. इसका उद्देश्य देश को विनिर्माण का हब बनाना है, ताकि देश में उत्पादित वस्तुओं का दुनियाभर में निर्यात किया जा सके. मोदी ने ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ के बजाए ‘एक्ट ईस्ट’ का नारा दिया.

श्रम ब्यूरो के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक हालांकि देश में रोजगार सृजन में कमी आई है, जबकि विनिर्माण, बुनियादी ढांचा और खनन क्षेत्र में वृद्धि के संकेत हैं. यह स्थिति अपने आप में चिंताजनक है.

वोल्वो इंडिया के प्रबंध निदेशक कमल बाली ने कहा, “श्रम कानूनों को लचीला बनाने की भी जरूरत है. वस्तु एवं सेवा कर कानून के तहत कई चीजें लाई जानी थीं, जिन्हें नहीं लाया गया. भूमि विधेयक में देरी से उद्योग जगत पर प्रभाव पड़ा है.”

मोदी ने चुनाव अभियान के दौरान एक लाख करोड़ रुपये की लागत वाली 100 स्मार्ट सिटीज की महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी. जाहिर है, स्मार्ट सिटीज के निवासी भी स्मार्ट होंगे. यानी यह खास योजना आम लोगों के लिए नहीं है. बहरहाल, यह योजना अभी जमीन पर उतरनी बाकी है.

बाली ने कहा, “परियोजनाएं एक दिन में साकार नहीं होतीं, इसमें वर्षो लगते हैं. अभी मोदी के कार्यकाल को एक साल ही हुआ है, अगले सात-आठ वर्षो में स्मार्ट शहरों के निर्माण के प्रमाण मिलने लगेंगे.”

वहीं, बाजार विश्लेषक शिरीष जोशी कहते हैं, “पिछले एक साल में सिर्फ परियोजनाएं ही बनाई जा रही हैं, स्मार्ट शहरों का निर्माण तो दूर अभी तक इसके लिए शहरों का चयन ही नहीं किया गया है.”

हालांकि केंद्रीय शहरी विकास, शहरी आवास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि इस साल तक स्मार्ट शहरों के लिए शहरों का चयन कर लिया जाएगा. भारत सरकार ने 100 स्मार्ट शहरों के प्रथम चरण के विकास के लिए 6,000 करोड़ रुपये आवंटित कर दिए हैं.

हाल ही में दिल्ली में स्मार्ट सिटीज इंडिया-2015 एक्सपो के जरिए मोदी सरकार की इस परियोजना का खाका पेश किया गया. प्रदर्शनी में भारतीय कंपनियों सहित स्वीडन, पोलैंड और यूरोप की यूरोपियन बिजनेस टेक सेंटर जैसी कंपनियों ने हिस्सा लिया.

ब्रिटेन की चर्चित पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने मोदी को ‘वन मैन बैंड’ करार दिया है.

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