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एमपी में टीम ज्योतिरादित्य के भरोसे कांग्रेस

भोपाल | एजेंसी: मध्य प्रदेश में बीते लगभग दो दशकों से कांग्रेस की राजनीति पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के इर्द गिर्द ही घूमती रही है. मगर अब बदलते हालात में कांग्रेस आलाकमान ने साफ संकेत दे दिए हैं कि पार्टी अब केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भरोसे चुनावी वैतारिणी पार करने के प्रयास कर रही है.

राज्य में कांग्रेस के गुटों में बंटे होने की बात किसी से छुपी नहीं है, यहां पार्टी की पहचान दिग्विजय सिंह, केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और पूर्व मंत्री सुरेश पचौरी के गुटों के तौर पर रही है. इन सब पर दिग्विजय सिंह हमेशा भारी पड़ते रहे हैं.

यही कारण है कि पार्टी की प्रदेश की विभिन्न इकाइयों की कमान उसी के हाथ में जाती रही है, जिसे दिग्विजय सिंह ने चाहा है.

वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष भूरिया और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की तैनाती भी दिग्विजय सिंह की ही मर्जी से हुई थी. इन दोनों को सिंह का समर्थन हासिल है. इसके विपरीत बीते एक माह में राज्य की राजनीति को लेकर हुए फैसलों ने यह संकेत दे दिया है कि राज्य के मामलों में पार्टी में सिंह की पकड़ कुछ कमजोर हो चली है.

यही कारण है कि राज्य की राजनीति में सिंधिया से चली आ रही पुरानी अदावत के बावजूद वे सिंधिया को विधानसभा प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनने से नहीं रोक पाए हैं.

राज्य की राजनीति के बदलते समीकरणों पर गौर करें तो पता चलता है कि राज्य की महिला नेत्री शोभा ओझा को महिला कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया है. इसी तरह विधानसभा चुनाव को लेकर बनी समितियों में चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष भूरिया और आरोप पत्र समिति के अध्यक्ष अजय सिंह के अलावा दीगर अन्य समितियों की कमान दूसरे गुटों के लोगों को सौंपी गई है.

विधानसभा चुनाव की सभी समितियों का समन्वयक केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, घोषणा पत्र समिति का अध्यक्ष सुरेश पचौरी, प्रचार समिति का अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रचार-प्रसार समिति का अध्यक्ष प्रेमचंद गुड्डू, प्रबंधन समिति का अध्यक्ष अरुण यादव को बनाया गया है.

इन सभी की दिग्विजय सिंह से दूरी किसी से छुपी नहीं है. इतना ही नहीं अन्य समितियों के लिए बनाए गए समन्वयक और सदस्यों में ज्यादातर सिंह से दूरी रखने वाले हैं और अधिकांश की गिनती कमलनाथ, सिंधिया, पचौरी के समर्थक के तौर पर होती है.

पार्टी सूत्रों पर भरोसा करें तो कांग्रेस नहीं चाहती है कि दिग्विजय सिंह का चेहरा सामने होने पर भाजपा उनके शासनकाल का हवाला देकर जोरदार हमला कर सके और मतदाता भ्रमित हों. लिहाजा उसने नए चेहरों को सामने लाकर चुनावी लड़ाई लड़ने का मन बनाया है और उन लोगों को समितियों में आगे रखा है, जो राज्य में कांग्रेस की सत्ता के दौरान किसी अहम पद पर नहीं रहे हैं. इतना ही नहीं इन पर सीधे तौर पर गंभीर आरोप नहीं हैं.

कांग्रेस में चुनाव को लेकर बनी समितियों से एक बात तो साफ हो ही गई है कि दिग्विजय सिंह का राज्य की राजनीति में प्रभाव कम और सिंधिया सहित अन्य नेताओं की पकड़ मजबूत हो चली है.

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