कलारचना

रीमेक फिल्मों का औचित्य समझ के परे: नसीरुद्दीन

मुंबई | एजेंसी: देश के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं में शुमार नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि रीमेक फिल्मों का औचित्य उनकी समझ से परे है और वह 1983 में आई अपनी फिल्म ‘मासूम’ के रीमेक के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं.

नसीरुद्दीन ने एक साक्षात्कार में कहा, “मुझे रीमेक फिल्मों का औचित्य समझ में नहीं आता. पहली बात तो यह कि फिल्मों का रीमेक बनना ही नहीं चाहिए. यह धोखा है, बॉलीवुड रीमेक फिल्मों के माध्यम से अपने मानसिक आलस्य और उदासीनता को छिपाना चाहता है. पहले यह अलग तरीके से किया जाता था, लेकिन जब तक आपके पास फिल्म के लिए कोई दूसरा दृष्टिकोण न हो, रीमेक नहीं बनाना चाहिए.”

निर्देशक शेखर कपूर की फिल्म ‘मासूम’ की कहानी एक ऐसे परिवार के बारे में है, जो पति की नाजायज संतान की खबर से बिखर जाता है. नसीरुद्दीन ने फिल्म में पति की भूमिका निभाई थी जबकि अभिनेत्री शबाना आजमी पत्नी की भूमिका में दिखी थीं. नसीरुद्दीन के लगभग 40 साल के फिल्मी करियर में ‘मासूम’ उनकी पसंदीदा फिल्मों में से है.

खबर है कि अभिनेता-गायक-निर्माता हिमेश रेशमिया ने हाल ही में फिल्म का रीमेक बनाने के लिए अधिकार खरीदे हैं. नसीरुद्दीन का कहना है कि फिल्म की कहानी वर्तमान समय के हिसाब से बिल्कुल भी प्रासंगिक नहीं है.

उन्होंने कहा, “मासूम’ किसी भी तरह पहले से ज्यादा बेहतर नहीं बनाई जा सकती. मुझे नहीं लगता कि किसी को भी ‘मासूम’ का रीमेक बनाने की कोशिश करनी चाहिए. आज ई-मेल और मोबाइल फोन के दौर में ऐसा कैसे हो सकता है कि 10 साल के किसी बच्चे के पिता को उसके होने की खबर ही न हो.”

हाल के वर्षो में बॉलीवुड में पिछले दौर की कई फिल्मों की रीमेक फिल्में आई हैं, जिनमें ‘अग्निपथ’, ‘हिम्मतवाला’, ‘चश्मे बद्दूर’, ‘डॉन’, ‘उमराव जान’ और ‘कर्ज’ कुछ उदाहरण हैं. इनके अलावा ‘हीरो’, ‘जंजीर’ और ‘बातों बातों में’ की रीमेक फिल्में फिल्हाल निर्माणाधीन हैं.

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