प्रसंगवश

न्याय के लिये भटकती ‘निर्भया’

निर्भया को न्याय नहीं मिल सका. हमारी न्याय व्यवस्था की यह कैसी बिडंबना है. 16 दिसंबर, 2012 को अमानवीयता की सारी हदें पार करने वाला नाबालिग अपराधी कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर रिहा हो गया. लेकिन उस निर्भया का क्या होगा, जिसने इस दरिंदगी के बाद 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर में अंतिम सांस ली थी.

दिल्ली उच्च न्यायालय उसकी रिहाई पर रोक नहीं लगा सका, क्योंकि कानूनी नियमों के तहत उसे उसके किए की सजा मिल चुकी है. लेकिन वास्तव में उसका गुनाह उसे माफी देने लायक नहीं है. कानून की बारीकियों का लाभ उठा वह बाल सुधार गृह से भले बाहर आ गया, लेकिन उसकी आत्मा और समाज उसे क्या कभी माफ करेगा? वह समाज में सिर उठाकर नहीं चल सकेगा. समाज में उसका परिवार भी सिर उठाकर नहीं जी सकेगा. लेकिन सवाल उठता है कि निर्भया को आखिर न्याय कैसे मिलेगा?

इस क्रूरतम घटना के जितने भी गुनाहगार थे, तीन साल बीतने के बाद भी उन्हें सजा नहीं मिल पाई है. निर्भया कांड के बाद जिस तरह दिल्ली की सड़कों पर जैनसैलाब उमड़ा था, उससे यही प्रतीत हुआ था कि अब देश में कोई दूसरी लड़की निर्भया नहीं बनेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस मामले में आरोपी मुकेश, विनय और पवन को निचली अदालत से मौत की सजा सुनाई गई है. इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी है. अभी यह मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, जबकि एक आरोपी राम सिंह 11 मार्च को तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी.

पांचवां आरोपी यह किशोर आखिरकार सुधार गृह से छूट गया, लेकिन निर्भया की आत्मा न्याय के लिए भटकती रही, उसे न्याय नहीं मिल सका.

देश की सहिष्णु कानून व्यवस्था दरिंदगी जैसे अपराधों में भी सजा दिलाने में नाकाम रही है. समाज के लिए यह सबसे बड़ा अपराध हैं. पीड़िता के माता-पिता ने कहा है कि जुर्म जीत गया और हम हार गए. सच बात है. पांच दरिंदे कानूनी फंदे का लाभ उठा जेल में मौज कर रहे हैं, जबकि जिस मां-बाप के सपने को इन्होंने कुचल दिया, उन्हें न्याय नहीं मिल सका. निर्भयाकांड के बाद दुष्कर्म की घटनाएं और अधिक हुई हैं.

पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया को मौत के घाट उतारने वाला किशोर यूपी के बदायूं जिले के इस्लामपुर के भवानीपुर नगला का रहने वाला है. उसकी रिहाई को लेकर गांव में उबाल है. गांव वाले चाहते हैं कि रिहाई के बाद वह गांव में न आए, क्योंकि उसने जिस तरह का अपराध किया है उससे गांव की साख को बट्टा लगा है.

देश में ही नहीं दुनियाभर में गांव की बदनामी हुई है. इस गांव से बाहर नौकरी को जाने वाले वाले युवा हिकारत भरी नजरों से दखे जाते हैं. उन्हें उसके कृत्य पर पीड़ा है. हालांकि उसकी मां चाहती है कि वह गांव आए और उसे समाज और गांव वाले सुधरने का मौका दें, क्योंकि उसकी उम्र 10 साल थी तभी से वह घर छोड़ कर दिल्ली निकला था.

परिवार की माली हालत खराब होने से उसे ऐसा कदम उठाना पड़ा, लेकिन दिल्ली में जाकर उसने जिस तरह का कृत्य किया. उससे पूरा गांव शर्मसार हो गया.

आंकड़े बोलते हैं कि 2014 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति बलात्कार की घटनाओं में 50 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यह बात सदन में पूछे गए सवाल के जबाब में खुद सरकार ने दिया है. 2014 में यहां 2801 दुष्कर्म की घटनाएं हुई हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. देश में 2002 से 2012 तक महिला अपराधों में 69 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है. सबसे अधिक महिलाएं पति और निकट करीबियों से प्रताड़ित हुई हैं. 2002 में महिलाओं के प्रति दुष्कर्म, उत्पीड़न और घरेलू हिंसा की देश में कुल 1,09,784 घटनाएं हुईं, जबकि 2012 में यह बढ़कर 1,86,033 तक पहुंच गईं.

देश की विकास दर, मुद्रा-स्फीति और रुपया अमूल्यन जैसे आार्थिक मामलों में चिंता जनक हालात रहे, लेकिन इन 10 सालों में दुष्कर्म में 52.2 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यानी देश ने विकास में 50 फीसदी तरक्की नहीं हासिल किया, लेकिन महिलाओं के प्रति यौन अपराध में यह रिकार्ड प्रगति हासिल की है. इससे बड़ी शर्म की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है.

देश में 2002 में जहां 16,313 दुष्कर्म की वारदातें हुईं, वहीं 10 साल बाद यानी 2012 में बढ़कर 24,923 तक पहुंच गया. अपहरण की घटना ने कान खड़े कर दिए हैं. इसमें 163 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी हैं 2002 में जहां 14,506 महिलाओं का अपहरण हुआ वहीं 2012 में यह 38,262 पर जा पहुंचा.

घरेलू हिंसा ने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं. वर्ष 2002 में इस कटेगरी में 49,237 घटनाएं हुईं, जबकि 10 साल बाद यह बढ़कर 1,06,527 तक जा पहुंचा.

2011 से 2012 तक मध्य प्रदेश में सामूहिक दुष्कर्म की 255 वारदातें हुईं, जिसमें सामाजिक लांछन, प्रताड़ना और कलंक से ऊब कर घटना की शिकार 26 महिलाओं ने आत्महत्या के जरिए खुद की जिंदगी खत्म कर ली. देश में 2013 में महिलाओं के प्रति 12 फीसदी दुष्कर्म की घटनाआंे में इजाफा हुआ है.

दुष्कर्म के मामलों में 98 फीसदी खुद के परिचित थे. 38 फीसदी दुष्कर्म नाबालिगों से हुआ. 92 फीसदी कामकाजी महिलाएं असुरक्षित हैं. दिल्ली में 66 फीसदी महिलाएं छेड़छाड़ की शिकार होती हैं. दिल्ली में हर घंटे एक दुष्कर्म और 20 मिनट में छेड़छाड़ की वारदात होती है. जानें इन सब पर कब और कैसे विराम लगेगा.

देश के कानून में बदलाव अहम हो गया है. संचार प्रगति के कारण अब नाबालिगों के लिए सेक्स हिंसा आम बात हो गई है. समय के साथ अब पुराने कानूनों में बदलाव आना चाहिए.

अरुणा शानबाग 42 सालों तक जीवन और मौत से संघर्ष करने के बाद इस दुनिया से चली गईं, लेकिन हम उसे न्याय नहीं दिला पाए. हमारे लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है. अरुणा शानबाग यानी दर्द और इंसानी दरिंदगी का एक इतिहास खत्म हो गया. अब उनकी जिंदगी से जुड़ी घटना एक कहानी में तब्दील हो गई है.

इंसानी सोच और हमारी व्यवस्था ने अरुणा को इन 42 सालों में जो चोट पहुंचायी. यह पीड़ा उसके साथ हुए हादसे से भी बड़ा था. वह कौन और क्या थी. उससे जानने में हमारी एक पूरी पीढ़ी पैदा होने के बाद अपनी जिंदगी की सीढ़ियां चढ़ अधेड़ उम्र की दहलीज पर जा जा पहुंची, लेकिन उसकी कहानी से रुबरु नहीं हो सकी. यह हमारे लिए और चिंता और चिंतन का सवाल है.

निर्भया को भी अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है. उसकी आत्मा और इंसाफ पाने के लिए भटक रही है. उसका संघर्ष कितना कामयाब होगा यह वक्त बताएगा. लेकिन निर्भया को लेकर समाज में जितनी जागरूकता पैदा हुई थी, वह दूसरे मामलों आज तक नहीं हुई. वह चाहे बदायूं की घटना रही हो या पश्चिम बंगाल की. उसका प्रभाव इतना गहरा नहीं पड़ा. लेकिन इसके बाद भी क्या मिला. यह अपने आप में बड़ा सवाल है.

देश का कानून दरिंदे को सजा नहीं दिला सका, लेकिन निर्भया के छह आरोपियों में ईश्वर ने दो को स्वयं सजा दे डाली है. उन्होंने खुद फांसी लगा अपनी जिंदगी खत्म कर ली है. अब निर्भया को न्याय मिलेगा या नहीं. जब तक उसे न्याय मिलेगा तब तक देश पीढ़ी उस त्रासदी को भूल गई होगी. फिर उस न्याय का क्या मतलब होगा. दिल्ली महिला आयोग ने उसकी रिहाई के खिलाफ अदालत में याचिका दाखिल की, जो खारिज हो चुकी है. राज्यसभा में जुवेनाइल बिल हालांकि पास हो गया है.

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