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विधानसभा चुनाव के सबक

नंदकुमार कश्यप
11 तारीख को हुए चुनाव नतीजों को एक बार फिर से मोदी जी की रणनीतिक जीत माना जाएगा. जिन राज्यों में मोदी बनाम अन्य मुद्दा बना वहां मोदी के पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण हुआ. इसे एक उदाहरण से भी समझा जा सकता है. AIMIM को महज 2 फीसदी वोट मिले परंतु उसके कट्टरपंथी प्रचार से बहुत ज्यादा हिंदू ध्रुवीकरण हुआ और विशाल बहुमत के बावजूद यूपी में 312 सीटें बीजेपी तथा 39.7 फीसदी वोट विरुद्ध बाकी सभी 90 सीटें तथा 60.3 फीसदी वोट. जिसमें बसपा को 22.2 फीसदी, सपा को 21.8 फीसदी, कांग्रेस को 6.2 फीसदी आदि.

उत्तराखंड में बीजेपी को 56 सीटें तथा 46.51 फीसदी वोट (2014-55%), कांग्रेस को 11 सीटें तथा 33.5 फीसदी वोट, बसपा को फीसदी वोट निर्दलीय को 10 फीसदी वोट तथा 2 सीटें मिले.

गोवा में बीजेपी को 11 सीटें तथा 32.5 फीसदी वोट, कांग्रेस को 17 सीटें तथा 28.4 फीसदी वोट, मणिपुर में बीजेपी को 21सीटें तथा 36.3 फीसदी वोट और कांग्रेस को 28 सीटें तथा 35.1 फीसदी वोट मिले.

पंजाब में बीजेपी को 3 सीट तथा 5.4 फीसदी वोट, कांग्रेस को 38.5 फीसदी वोट तथा 77 सीटें, अकाली दल को 15 सीटें तथा 25.2 फीसदी वोट और ‘आप’ को 20 सीटें तथा 23.7 फीसदी वोट यह भी दिखलाते हैं कि वोटों के प्रतिशत सीटों से अनुपात में नहीं वरन् वोटों के ध्रुवीकरण पर निर्भर करते हैं. इसीलिए लगातार समानुपातिक चुनाव प्रणाली अपनाने की मांग होती रही है.

खैर यह भी देखना होगा कि पंजाब में किसानों की आत्महत्या और नशा भावनात्मक मुद्दा था. उससे जुड़े आर्थिक नीतियां, भ्रष्टाचार और नोटबंदी सभी किसान विरोधी कदमों के कारण थे. इसलिए अकाली बीजेपी गठबंधन को 30.6 फीसदी वोट मिलने के बावज़ूद आप से कम 18 सीटें ही मिल पाई हैं. उसी तरह गोवा में बीजेपी को सत्ता में रहने का नुकसान हुआ जबकि वोट प्रतिशत कांग्रेस से अधिक है.
मणिपुर में केन्द्र की सरकार के अनुरूप वोट डालने की परंपरा है और बीजेपी को अधिक प्रतिशत वोट के बावजूद कम सीटें 21 मिली जबकि कांग्रेस को 28 क्योंकि अन्य प्रगतिशील तबकों ने उसको वोट दिलाया.

यूपी और उत्तराखंड के नतीजों ने सबको चौंकाया. एक्जिट पोल वालों तक को लेकिन मेरी समझ से इन दोनों राज्यों के मतदाताओं ने कुलीनता और अति बौद्धिकता के खिलाफ भी वोट किया है. नोटबंदी से लेकर सांप्रदायिक दंगे जिसके लिये राज्य सरकार भी ज्यादा जिम्मेदार थी. भ्रष्टाचार और परिवार वाद जिसमें सपा-कांग्रेस गठबंधन ने घी डालने का काम किया. मुझे लगता है पीके को भाजपा द्वारा प्लांट किया गया था जिससे कांग्रेस के कुछ गंभीर राजनैतिक धर्मनिरपेक्ष अभियान को ले डूबा और कांग्रेस ने दलित अल्पसंख्यकों का विश्वास खो दिया. मायावती लोकसभा के शून्य से उबर ही नहीं पाईं और उनका अभियान उत्तेजित शोर ज्यादा था परिपक्व राजनैतिक चुनाव अभियान कम. शायद सोशल मीडिया में रहने का खामियाजा भी हो सकता है जहाँ लोग एक आभासी दुनिया में अपनो के लाईक से खुश रहते हैं.

मैंने इस नतीजे को कुलीनता और अति बौद्धिकता के खिलाफ इसलिए कहा कि प्रधानमंत्री को चायवाला, डिग्री, गधा आदि सवालों पर घेरकर खिल्लियाँ उडा़ई गई परंतु देश के आम जन की तो जिंदगी ही वही है. अपनी आजीविका के लिए कुछ पैसे खर्चकर आदमी किसी कोने में खड़े हो चाय बेच रोटी कमाता है. उसके पास डिग्री भी नहीं होती और वह गधे की तरह काम भी करता है और खुद गधा उसके लिए रोटी कमाता है.

नोटबंदी पर मोदी जी ने विपक्ष को कालाबाजारियों, धनी, पैसों वालों के पैरोकार के रूप में प्रचारित किया और लगभग सारे विपक्ष ने पूंजीवादी शब्दावली में ही (जीडीपी, ग्रोथ आदि, प्रभात पटनायक का पहला आलेख का शीर्षक ही था ‘यह सरकार इस व्यवस्था को नहीं समझती’) जबकि आम गरीब मेहनतकश की धारणा यह थी कि बड़े पैसे वालों का पैसा देश के लिए निकल रहा.

इन नतीजों के बाद विपक्ष में हल्की झुंझलाहट युक्त निराशा दिखती है जो उसके जनता के मुद्दों से दूर होने और सुविधा तथा जोड़-तोड़ की राजनीति में संलग्न रहने के कारण है. पूरे नतीजे किसी भी तरह से एकतरफा नहीं हैं और यदि भाजपा इस मुगालते में रहती है कि वह देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान से छेड़छाड़ कर जन विरोधी काम करके मीडिया के बलबूते 2019 जीत लेगी तो यह भी उसका भ्रम साबित होगा. महाभारत की कथा में 100वीं गलती करने पर जयद्रथ मारा गया था, लोकतंत्र में जनता ही भुवनेश्वर है, किसी की गलती माफ नहीं करती है.

सबसे बड़ा सबक वाम को लेना होगा. उसे संयुक्त रूप से 1 फीसदी से भी कम वोट मिले हैं जबकि अपना दल सोने लाल गुट को 1 फीसदी वोट के साथ 9 सीटें मिल जाती हैं. कहीं न कहीं वाम आम जन की समस्याओं को समझने और उन्हें दूर करने के संघर्ष में हाशिये के लोगों के साथ अपना तालमेल बिठाने में असमर्थ होते जा रहा है. उसकी कमजोरी का सर्वाधिक फायदा धुर दक्षिणपंथी सांप्रदायिक शक्तियों को मिलता है क्योंकि व्यवस्था विरोधी विकल्प की वैज्ञानिक समझ वाम के ही पास है और वही निस्वार्थ रूप से व्यापक एकता और संघर्ष विकसित कर सकता है, और इन्हीं कारणों से उसपर हमले भी होंगे.
(यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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