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उत्तराखंड में त्रासदी के बाद भी कुछ नहीं बदला

देहरादून | एजेंसी: कहा जाता है कि समय मरहम होता है और बड़ा से बड़ा घाव भर देता है. उत्तराखंड की त्रासदी में उजड़े सैकड़ों ग्रामीणों के जीवन में साल भर बाद भी कोई राहत नहीं है. बस समय ने उनके दर्द और बढ़ा दिया है और ‘भगवान की अपनी धरती’ कहे जाने वाले इस पहाड़ी राज्य में कोई बदलाव नहीं होने से लोगों का संताप बढ़ता चला जा रहा है.

पिछले वर्ष 16 जून को बादलों ने जो तबाही मचाई थी उससे उत्तराखंड के कई गांव तबाह हो गए. लोगों को रोजी रोजगार से महरूम होना पड़ा. तीर्थयात्रा का समय होने के कारण देश भर से हजारों लोग वहां जमा थे और बादल फटने और भारी बारिश के बाद उफनी नदियों, भूस्खलन ने हजारों लोगों की जान ले ली.

इस त्रासदी की सबसे दर्दनाक घटना मशहूर केदार मठ के ठीक पीछे एक ग्लेशियर का पिघल जाना रहा जिससे व्यापक जन हानि हुई. चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के मार्ग में फंसे हजारों यात्रियों को सुरक्षित निकालने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. इसके बाद सरकार ने सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में ढेर सारे उपाय, पर्यावरण के साथ छेड़खानी रोकने का वादा किया था, लेकिन स्थानीय लोगों की तकलीफों में कोई बदलाव नहीं आया है.

पर्यटन क्षेत्र के पुनर्जीवन का प्रयास अत्यंत धीमी गति से चल रहा है. ग्रामीणों का पुनर्वास भी सुस्त और यही हाल आपदा से पीड़ित लोगों के बीच अनुग्रह के बंटवारे का है.

उत्तराखंड सरकार के अधिकारी इस बात को मानते हैं कि आपदा में 7000 से ज्यादा लोग या तो मारे गए हैं या फिर लापता हैं जिनका आज तक पता नहीं चल पाया है. लेकिन अभी तक कोई 4000 लोगों को ही अनुग्रह दिया जा सका है.

उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों का कहना है कि राज्य के 1,150 लोग चार धाम की यात्रा पर गए थे. ये लोग या तो मारे गए या फिर लापता हैं.

उत्तराखंड सरकार ने इनमें से 850 लोगों का ही मृत्यु प्रमाण पत्र भेजा है और अब अधिकारी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा प्रति मृतक 5.50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि बांटने के तौर तरीके तलाश रहे हैं.

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