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अखबारों का हाल

ओम थानवी | फेसबुक: अख़बारों का हाल देखिए-छोटे शाह 100 करोड़ का मुक़दमा दायर कर देंगे- यह है सुर्खी. भ्रष्टाचार का संगीन आरोप पीछे हो गया, धमकी आगे! कल्पना कीजिए यही आरोप केजरीवाल, चिदम्बरम, वीरभद्र सिंह या किसी अन्य दुश्मन पार्टी के साहबजादे पर लगा होता?

तब मुक़दमे की धमकी की बात ख़बर की पूँछ में दुबकी होती. टीवी चैनल सिर्फ़ एक वर्ष में 16000 गुणा बढ़ोतरी को शून्य के अंक जगमगाते हुए दुहराते. दिनभर रिपोर्टर आरोपी का पीछा करते, घर-दफ़्तर पर ओबी वैन तैनात रहतीं, शाम को सरकार, संघ, वीएचपी के आदि के साथ बैठकर सरकार समर्थक पत्रकार या बुद्धिजीवी नैतिक पतन की धज्जियाँ उड़ा रहे होते.

हमारे मीडिया को क्या हो गया है? क्या कहें कि लकवा मार गया है या ज़मीर मर चुका है? इमरजेंसी में भी अख़बार वाले इतने कायर नहीं थे, गो कि उस वक़्त तो क़ानून लागू कर उनके हाथ और मुँह बाँध दिए गए थे.
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निजी हैसियत में व्यापार करने वाले जय अमित शाह का सरकार से क्या लेना-देना? पर पहले एक केंद्रीय मंत्री को उनके बचाव में तैनात किया गया. अब ख़बर है कि एक बड़े सरकारी वक़ील (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल) तुषार मेहता जय शाह को क़ानूनी सलाह प्रदान कर रहे हैं. शायद यही सरकारी वक़ील उनका मुक़दमा भी लड़ें. सरकारी धन, सरकारी सेवा और काम एक निजी व्यापारी का?

जबकि ‘वायर’ के प्रधान सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन का कहना है कि दो रोज़ पहले उनकी ओर से जय शाह को जब प्रश्नावली भेजी गई तो उन्होंने कहा था वे अपने सीए से बात कर जवाब देंगे. फिर उनकी सेवा में सरकार को किसने लगाया? वह भी तुरतातुरत.

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