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धान की जगह पेड़ लगाने से कितना बदलेगा छत्तीसगढ़?

आलोक प्रकाश पुतुल

आदिवासी और जंगल बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में सरकार किसानों को अपने खेतों में वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित कर रही है. धान के खेत में पौधा लगाने वालों को राज्य सरकार प्रति एकड़ दस हज़ार रुपये की प्रोत्साहन राशि तीन साल तक देगी.

सरकार के इस नए फैसले से राज्य में अब पेड़-पौधे काटना भी आसान हो जाएगा. अब ऐसे नियम बनाये जा रहे हैं जिससे नागरिकों को वृक्ष लगाने एवं काटने हेतु राजस्व एवं वन विभाग को सूचना देने मात्र की आवश्यकता होगी.

इस नई योजना को लेकर सिविल सोसाइटी चिंतित है. इनकी मानें तो इस योजना से न केवल खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी बल्कि आदिवासी और अन्य ग्रामीण लोगों का सामुदायिक भूमि से नियंत्रण भी कम होगा.

एक तरफ छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों की तरफ खाद्य सुरक्षा का संकट है तो दूसरी तरफ राज्य सरकार किसानों को अपने खेत में वृक्षारोपण करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. धान के खेत में पौधा लगाने वालों को राज्य सरकार प्रति एकड़ दस हज़ार रुपये की प्रोत्साहन राशि तीन साल तक देगी. इस महीने की एक तारीख़ से राज्य सरकार की इस योजना की शुरुआत भी हो चुकी है.

योजना के तहत वन विभाग द्वारा इस साल 99 लाख से अधिक पौधे रोपने की तैयारी की गई है, साथ ही 2 करोड़ 27 लाख पौधों का वितरण भी किया जाएगा. राज्य सरकार ने इस योजना के तहत इमारती और गैर इमारती प्रजातियों के वाणिज्यिक व औद्योगिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने का फ़ैसला किया है.

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार आम तौर पर एक एकड़ में काष्ठ प्रजाति के 455 या एक एकड़ में फलदार प्रजाति के 160 पौधे लगाने को आदर्श स्थिति माना जाता है. इस तरह अगर 3 करोड़ 26 लाख पौधे, खेतों में लगाने के राज्य सरकार के लक्ष्य को ध्यान में रखा जाए तो काष्ठ प्रजाति के लिए लगभग 71,648.35 एकड़ या फलदार प्रजाति के पौधारोपण की स्थिति में 2,03,750 एकड़ धान के खेत की ज़रुरत होगी.

माना जा रहा है कि राज्य सरकार राज्य में धान का रकबा कम करना चाहती है क्योंकि पूरे देश में सर्वाधिक 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान की ख़रीदी राज्य सरकार के लिए भारी पड़ रही है. 2020-21 में सरकार ने किसानों से 92 लाख मीट्रिक टन धान ख़रीदा था लेकिन केंद्र सरकार ने चावल लेने से मना कर दिया और राज्य सरकार इसे औने-पौने भाव में खुले बाज़ार में बेचने के लिए बाध्य हो गई.

सामाजिक संगठनों को आशंका है कि राज्य सरकार की धान के खेत में पौधे लगाने की योजना, ग्रामीण इलाकों में कई मुश्किलें खड़ी करने वाला साबित हो सकता है.

कुछ शोधकर्ता मान कर चल रहे हैं कि सरकार की इस कोशिश से आदिवासी इलाकों में खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित होगी.

असल में छत्तीसगढ़ सरकार ने 18 मई को राज्य भर में ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना’ शुरु करने का फ़ैसला लिया था. इस योजना में जिन किसानों ने खरीफ वर्ष 2020 में धान की फसल ली है, यदि वे धान फसल के बदले अपने खेतों में वृक्षारोपण करते हैं, तो उन्हें आगामी तीन वर्षों तक प्रतिवर्ष 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी.

धान की जगह पेड़
धान की जगह पेड़ लगाने का लाभ

इसी तरह ग्राम पंचायतों के पास उपलब्ध राशि से यदि वाणिज्यिक वृक्षारोपण किया जाएगा, तो एक वर्ष बाद सफल वृक्षारोपण की दशा में संबंधित ग्राम पंचायतों को शासन की ओर से 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी.

इसके अलावा संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के पास उपलब्ध राशि से यदि वाणिज्यिक आधार पर राजस्व भूमि पर वृक्षारोपण किया जाता है, तो पंचायत की तरह ही संबंधित समिति को एक वर्ष बाद 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. वृक्षों को काटने व विक्रय का अधिकार संबंधित समिति का होगा.

पेड़ों को काटना होगा आसान

एक जून से शुरु की गई ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना’ में जिस वन और राजस्व वन भूमि पर वन अधिकार पत्र दिए गए हैं, उस भूमि पर भी हितग्राहियों की सहमति से इमारती, फलदार, बांस, लघु वनोपज एवं औषधि पौधों का रोपण किया जाएगा.

इस योजना के तहत लगाए गये वृक्षों को परिवहन अनुज्ञा की अनिवार्यता से मुक्त किए जाने हेतु भारत सरकार के दिशा निर्देश एवं राज्य में लागू प्रावधानों के अनुरूप ही नियम बनाए जाएंगे. राजस्व विभाग नियमों में इस प्रकार संशोधन करेगा, जिससे नागरिकों को वृक्ष लगाने एवं काटने हेतु राजस्व एवं वन विभाग को सूचना देने मात्र की आवश्यकता होगी.

राज्य शासन के वन विभाग, राजस्व विभाग तथा आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग के अधिकारियों की समिति गठित की जाएगी.

यह समिति राज्य तथा अन्य राज्यों के वर्तमान प्रावधान तथा भारत सरकार के द्वारा द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों का अध्ययन कर कटाई तथा परिवहन अनुज्ञा पत्र जारी करने की प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु सुझाव राज्य शासन को प्रस्तुत करेगी, जिसके आधार पर राज्य शासन द्वारा इस जटिल प्रक्रिया को सरल तथा सुगम बनाया जाएगा, जिससे नागरिक स्वयं निजी भूमि में वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहित होंगे.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि राज्य सरकार की इस महत्वपूर्ण योजना से निश्चित ही गांवों और जंगलों की तस्वीर बदलेगी. इससे किसानों को आय का एक नया जरिया मिलेगा, उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और हमारे गांवों में फिर से हरियाली दिखेगी.

धान की जगह पेड़
धान की जगह पेड़ लगाने का लाभ

भूपेश बघेल के अनुसार, “वृक्षों की कटाई के लिए बनाए नियमों के कारण जो व्यावहारिक कठिनाई आती थी, इस योजना में उन सभी के निराकरण की ओर भी ध्यान दिया गया है और इस योजना में निजी भूमि में लगाए गए वृक्षों की कटाई के लिए किसानों को भविष्य में अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी.”

छत्तीसगढ़ में वन

छत्तीसगढ़ का भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,191 वर्ग किलोमीटर है, जो कि देश के क्षेत्रफल का 4.1 प्रतिशत है. राज्य का वन क्षेत्रफल लगभग 59,772 वर्ग किलोमीटर है, जो कि प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 44.21 प्रतिशत है.

राज्य के वन आवरण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का देश में तीसरा स्थान है. राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना में लकड़ी का उत्पादन बढ़ाने, लकड़ी के आयात में कमी लाने, उद्योगों को लकड़ियों की पूर्ति और जंगल पर लकड़ियों के जैविक दबाव को कम करने पर जोर दिया है.

लेकिन छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच के विजेंद्र अजनबी राज्य सरकार की इस योजना को विनाशकारी मानते हैं.

विजेंद्र का आरोप है कि यह योजना एकफसली पौधारोपण को निजी भागीदारों को सौंपने और उसकी कटाई से लाभान्वित होने की दिशा में, पिछले दरवाजे से बढ़ावा देने की एक युक्ति है.

उनका कहना है कि जैव-विविधता संपन्न प्राकृतिक जंगलों के प्रदेश छत्तीसगढ़ में, कृषि-भूमि या वनेत्तर भूमि पर इस तरह के एकफसली वृक्षारोपण से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा. ज्यादा जरुरत वनों को गैर-वनीकरण कार्यों, प्राकृतिक ह्रास और अतिक्रमणों से बचाने की है.

विजेंद्र इससे संबंधित कई अध्ययन का हवाला देते हुए बताते हैं कि वाणिज्यिक उपयोग के एकफसली पौधारोपण जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने में नाकाफी है, जबकि इससे जैव विविधता का ह्रास, अधिक जल-उपयोग, भूमि क्षरण, उर्वरता में कमी, पुष्पन में कमी और अंततः वनों के उपयोग से समुदाय को वंचित करने जैसी स्थितियां ही परिणाम के रुप में सामने आती हैं.

मोंगाबे-हिंदी से बात करते हुए उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और कथित विकास के कारण लगातार कम होते हुए वृक्षों को देखते हुए, यह वाजिब समय है कि वाणिज्यिक लाभ के लिए नए पेड़ उगा कर उन्हें कटवाने के बजाय जो पेड़ खड़े हैं, उन्हें संरक्षित किया जाए. निजी लाभ के लिए बनायीं गयी इस नीति को तुरंत ख़ारिज करके इसके बदले वनाधिकार कानून के तहत वनभूमि की मान्यता पाये भूधारकों को नकद प्रोत्साहन दी जाए और ऐसे भू धारक जिनकी वनभूमि पर 5 फीट की ऊंचाई पर कम-से-कम 80 सेमी घेरे के वृक्ष हों, उन्हें बचाए रखने के लिए प्रतिवर्ष प्रति वृक्ष एक हज़ार रुपये का नकद प्रोत्साहन दिया जाये. ”

वनाधिकार और खाद्य सुरक्षा पर असर

छत्तीसगढ़ में सामाजिक संगठनों के समूह छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला इस योजना को वनाधिकार मान्यता कानून को कमजोर करने वाला बता रहे हैं. उनका तर्क है कि वन संसाधनो की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए ग्रामसभाओं द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से गठित नियम 4 (1) इ की कमेटी के बजाय, वन विभाग द्वारा बनाई गई संयुक्त वन प्रबंधन समिति को लाभार्थी बनाया गया है.

आलोक शुक्ला का कहना है कि इन समितियों के जरिये वन विभाग, वनाधिकार कानून के बावजूद सामुदायिक वन पर अपना स्वामित्व चाहता है, जिससे एकफसली पौधारोपण के नाम पर लकड़ी का उत्पादन बनाये रखा जा सके.

आलोक शुक्ला ने मोंगाबे-हिंदी से कहा कि संयुक्त वन प्रबंधन समिति उन वनभूमि को प्रबंधित कर रही हैं, जहां ग्रामसभाओं को वनाधिकार कानून की धारा 3 (1) झ के तहत प्रबंधन के अधिकार नहीं दिए गए हैं. यदि इस योजना के तहत संयुक्त वन प्रबंधन समिति को राजस्व भूमि पर पौधारोपण के लिए उकसाया जाता है, तो इससे समुदाय में द्वंद्व बढ़ने की गुंजाईश है.

वे छत्तीसगढ़ के पुराने अनुभवों का हवाला देते हुए कहते हैं कि गांव में पहले से ही सामुदायिक निस्तार की जमीनें बहुत कम बची हैं. पिछली सरकार ने भी लाखों हेक्टेयर निस्तार की जमीनों पर रतनजोत का पौधारोपण करके उन्हें समुदाय से छीना था.

आलोक का सुझाव है कि सरकार को पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन में सामुदायिक निस्तार की जमीनों को कब्जा मुक्त करना चाहिए था.

धान की जगह पेड़
धान की जगह पेड़ लगाने का लाभ

आलोक शुक्ला कहते हैं,“वनाधिकार कानून, समुदाय की पहुंच की वनभूमि पर सामुदायिक नियंत्रण व प्रबंधन का अधिकार देता है. लेकिन यहां ऐसा नहीं है. इसके अलावा योजना के अनुश्रवण के लिए राज्य स्तरीय समिति में आदिवासी विभाग के सचिव को शामिल न करना यह दर्शाता है कि यह योजना वनाधिकार मान्यता कानून के लिए कोई सम्मान नहीं रखती. इस योजना की मंशा से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश के जंगल को खनन व उद्योगों के लिए छोड़ दिया जाये और उसकी भरपाई, अन्य भूमि पर पेड़ लगा कर की जाये, जिसे जंगल कहा जा सके.”

स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली डॉ. सुलक्षणा नंदी ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना’ की नीतियों को लेकर चकित हैं और उनका कहना है कि इस नीति को बनाने वालों ने इसके प्रभाव की कोई चिंता ही नहीं की है. वे इसे आदिवासी इलाकों में खाद्य सुरक्षा से भी जोड़ती हैं.

सनद रहे कि राज्य में करीब 40 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. वर्ष 2016 में आए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार छत्तीसगढ़ के 37.6 फीसदी बच्चे (पांच वर्ष से कम आयु के) ठिगने हैं यानी इन बच्चों की लंबाई उनके उम्र के हिसाब से कम है. इसी तरह 23.1 फीसदी बच्चों का वजन उनके लंबाई के हिसाब से कम है और 37.7 फीसदी बच्चों का उम्र के हिसाब से वजन कम है.

इस उम्र के 41.6 फीसदी बच्चों के शरीर में खून की कमी (एनीमिया) पायी गयी. ऐसे ही राज्य की 47 फीसदी महिलाएं और 22.2 फीसदी पुरुष एनीमिया से ग्रस्त हैं. ऐसी स्थिति देखते हुए राज्य की खाद्य सुरक्षा को नजरंदाज करना गलत निर्णय साबित हो सकता है.

नंदी ने मोंगाबे-हिंदी से कहा कि ग्रामीण इलाकों में छोटे किसान केवल धान नहीं लगाते. धान के अलावा शेष मौसम में वे सब्जियां और दलहन भी उगाते हैं. ऐसे में अगर धान के खेत में पेड़ लगा दिए जाएंगे तो सुपोषण का मामला बुरी तरह से प्रभावित होगा.

लेकिन राज्य सरकार के प्रवक्ता और छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रवींद्र चौबे इन तर्कों से सहमत नहीं हैं.

उनका कहना है कि कृषि विभाग की राजीव गांधी किसान न्याय योजना में धान के बदले कोदो-कुटकी, गन्ना, अरहर, मक्का, सोयाबीन, दलहन, तिलहन, सुगंधित धान, केला, पपीपा आदि लगाने पर भी दस हज़ार रुपये देने का प्रावधान अब किया गया है. इसी तरह मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना में भी किसान सुविधानुसार धान के खेत में पौधे लगाने के साथ-साथ कंद-मूल की खेती भी कर सकते हैं.

रवींद्र चौबे ने मोंगाबे-हिंदी से बात करते हुए कहा “अगर कोई किसान धान के बजाये वृक्षारोपण करता है तो उसके बीच भी कई तरह की खेती की जा सकती है. राज्य के कई इलाकों में किसान कंद की खेती करते हैं. पेड़ों के बीच बची हुई जगह पर कई तरह की फसल लगाई जा सकती है. किसानों के पास कई विकल्प हैं और मुझे नहीं लगता कि इससे किसी क़ानून या खाद्य सुरक्षा पर कोई असर पड़ेगा.”

फिलहाल तो मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना का काम पूरे राज्य में तेज़ी से जारी है और इसका जैव विविधता, खेती, वन अधिकार और खाद्य सुरक्षा पर कितना असर पड़ेगा, इसके लिए तो कुछ साल प्रतीक्षा करनी होगी.
मोंगाबे-हिंदी से साभार

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