कलारचना

समानांतर सिनेमा की ‘गॉडमदर’ शबाना

नई दिल्ली | मनोरंजन डेस्क: शबाना आजमी को समानांतर सिनेमा की गॉडमदर कहा जाये तो गलत न होगा. उन्होंने ‘अर्थ’, ‘खंडहर’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘मंडी’ जैसे फिल्मों से इस मुकाम को पाया है. शबाना उन गिनी-चुनी अभिनेत्रियों में से हैं जिन्होंने सत्यजित रे, मृणाल सेन, अपर्णा सेन जैसे ख्यातिप्राप्त निर्देशकों के निर्देशन में काम किया है. भारतीय सिने जगत के रुपहले पर्दे पर चमकने के लिए तारिकाओं के लिए पहली शर्त खूबसूरती होती है, लेकिन कुछ अभिनेत्रियों ने इसके साथ ही अपने अभिनय को एक अलग पायदान पर पहुंचाया है. शबाना उन कुछ अभिनेत्रियों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट अभिनय से फिल्म जगत अपना खास मुकाम बनाया.

18 सितंबर, 1950 को उर्दू के प्रख्यात शायर व गीतकार कैफी आजमी और थिएटर अभिनेत्री शौकत आजमी के घर जन्मीं शबाना ने अपनी अभिनय प्रतिभा के बदौलत समांतर सिनेमा में अपना वर्चस्व कायम किया. बॉलीवुड की फिल्मों के मायाजाल और सपनीली दुनिया से परे समांतर सिनेमा की फिल्मों में भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से दर्शाती फिल्में ‘अर्थ’, ‘खंडहर’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘मंडी’ जैसी कई फिल्मों में शबाना ने अपने दमदार अभिनय के बलबूते अपने हर किरदार को इस कदर जीवंत कर दिया कि दर्शक उससे खुद को जोड़कर देख पाए.

शबाना ने केवल समांतर सिनेमा में ही अपना लोहा नहीं मनवाया, बल्कि ‘अमर अकबर एंथोनी’, ‘हनीमून ट्रेवल्स’, ‘संसार’ जैसी व्यावसायिक फिल्मों में भी काम कर अपने हुनर की पूरी छाप छोड़ी. अपने फिल्म करियर में शबाना ने श्याम बेनेगल से लेकर सत्यजित रे, मृणाल सेन, अपर्णा सेन जैसे भारत के अधिकांश प्रतिष्ठित निर्देशकों के साथ काम किया.

मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री लेने के बाद शबाना के फिल्मों में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है. जया भादुड़ी अभिनीत फिल्म ‘सुमन’ से शबाना इस कदर प्रभावित हुईं कि उन्होंने फिल्मों में आने का मन बना लिया और अपनी इसी मंशा को पूरा करने के लिए तुरंत ही भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान में दाखिला ले लिया. अपनी पहली ही फिल्म ‘अंकुर’ में शबाना ने अपने अभिनय का लोहा मनवा लिया.

अब तक 120 हिंदी और बांग्ला फिल्मों में काम कर चुकीं शबाना की उपलब्धियों की फेहरिस्त में पुरस्कारों की लंबी कतार अभिनेत्री के रूप में उनकी विशिष्टता की गवाही देते हैं. ‘अंकुर’, ‘अर्थ’, ‘पार’, ‘गॉडमदर’ और ‘खंडहर’ के लिए शबाना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया. ‘स्वामी’, ‘अर्थ’ और ‘भावना’ के लिए शबाना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी दिया गया.

पिता कैफी आजमी की लिखी पंक्तियों ‘कोई तो सूद चुकाए, कोई तो जिम्मा ले/ उस इंकलाब का जो आज तक उधार है..’ शबाना के दिल के तारों को इस कदर छूती हैं कि जो उन्हें समाज के प्रति जिम्मदारी निभाने में अपना योगदान देने के लिए हर पल प्रेरित करती हैं. इसी जज्बे से प्रेरित शबाना ने समाज के विभिन्न पहलुओं की जटिलताओं को पर्दे पर तो बखूबी दिखाया ही, साथ ही समाज के लिए कुछ करने के जज्बे से समाज सेवा से भी जुड़ीं.

महिला अधिकारों से लेकर झुग्गी बस्तियों में रहने वालों, अपनी जड़ों से अलग हो चुके शरणार्थी कश्मीरी पंडितों के अधिकारों या एड्स जैसे संवेदनशील मुद्दों जैसे कई मंचों पर शबाना ने अपना योगदान दिया.

शबाना आजमी को वर्ष 2012 में ‘पद्मभूषण’ से नवाजा गया. उन्हें गांधी इंटरनेशनल फाउंडेशन, लंदन द्वारा गांधी शांति पुरस्कार, शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘फायर’ के लिए ‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सिल्वर हुगो अवॉर्ड’ जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.

बचपन से ही प्रगतिशील विचारधारा की शबाना ने समाज के बनाए नियम-कायदों को अपनाने की जगह, हमेशा अपने दिल की सुनी. बात चाहे बोल्ड विषय पर बनी दीपा मेहता की ‘फायर’ जैसी फिल्म में अभिनय की हो या अपने निजी जीवन में पहले से ही शादीशुदा जावेद अख्तर से दूसरी शादी की हो, अपने अंतर्मन की आवाज पर अडिग शबाना ने अपनी मर्जी से फैसले लेकर साबित कर दिया कि केवल विचारधारा ही नहीं, उसके अनुसरण में भी वह प्रगतिशील हैं.

Huzoor is kadar bhi na itaraa ke chaliye… Masoom 1983

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