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पटना: रैली पर लाठीचार्ज, आंसू गैस

पटना | समाचार डेस्क: पटना में निषाद समाज के रैली पर आंसू गैस छोड़े गये तथा लाठी चार्ज किया गया. पुलिस का कहना है कि निषाद समाज की रैली प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश करना चाह रही थी. बिहार की राजधानी में गांधी मैदान के निकट शुक्रवार को निषाद समाज संघ द्वारा निकाले गए ‘निषाद अधिकार मार्च’ में शामिल लोगों और पुलिस के बीच हुई झड़प में कम से कम छह पुलिसकर्मी समेत 50 लोग घायल हो गए. प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा व आंसूगैस के गोले छोड़ने पड़े.

पुलिस के अनुसार, संगठन के प्रमुख मुकेश सहनी के नेतृत्व में गांधी मैदान से राजभवन तक प्रस्तावित निषाद अधिकार मार्च में हजारों लोग शामिल हुए. मार्च को गांधी मैदान के निकट जेपी गोलंबर के पास पुलिस ने रोक दिया. फिर भी प्रदर्शनकारी पुलिस बैरिकेडिंग तोड़कर आगे बढ़ते रहे. उन्हें रोकने के लिए जब पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो वे पुलिस से भी भिड़ गए.

पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मनु महाराज ने बताया कि भीड़ को प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश से कई बार रोका गया, लेकिन प्रदर्शनकारी प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रवेश कर हंगामा करने लगे.

उन्होंने बताया कि पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पहले लाठीचार्ज किया तथा 20 आंसूगैस के गोले दागे. एसएसपी महाराज ने पुलिस फायरिंग की घटना से इनकार किया है.

महाराज ने बताया कि मुकेश सहनी सहित 20 लोगों को हिरासत में लिया गया है.

झड़प के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पत्थर फेंके और 25 से ज्यादा वाहनों में तोड़फोड़ की गई. गांधी मैदान के आसपास बड़ी संख्या में पुलिस के जवान मौजूद हैं, आसपास के क्षेत्रों में भी तनाव बना हुआ है.

निषाद अधिकार मार्च के माध्यम से आंदोलनकारी राजभवन जाकर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने वाले थे. इनकी मांग मल्लाह, केवट, बिंद, बेलदार समेत कई उपजातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की है.

इधर, निषाद विकास संघ के उपाध्यक्ष पप्पू सिंह निषाद ने दावा किया कि शांतिपूर्ण ढंग से मार्च कर रहे निषाद समाज के लोगों पर पुलिस ने न केवल लाठियां चलाईं और आंसूगैस के गोले दागे, बल्कि हवा में गोली भी चलाई. उन्होंने कहा कि महिलाओं को भी दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया. उन्होंने बताया कि पुलिस की बर्बरतापूर्ण कारवाई में 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं.

पप्पू ने कहा कि निषाद जाति को अनुसूचित जाति या जनजाति में शामिल करने के लिए संघर्ष जारी रहेगा.

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