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21वीं सदी के माफिक कश्मीर

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: शनिवार को अपने संबोधन में मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि कश्मीर पर द्विपक्षीय बातचीत होनी चाहिये. उनका इशारा इस ओर था कि कश्मीर के मुद्दे को यूएन में उठाना नहीं चाहिये था. प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन महासभा में कहा कि 20वीं सदी के संस्थाओं तथा नीतियों में 21वीं के अनुसार बदलाव किया जाना चाहिये. उनका इशारा न केवल यूएन जैसी संस्थाओं के कार्यप्रणाली पर था बल्कि इससे उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा शुक्रवार को यूएण महासभा में कश्मीर में जनमत संग्रह के लिये उठाई गई बात का भी जवाब दे दिया. प्रधानमंत्री मोदी ने करारे कूटनीतिक भाषा में कह दिया कि कश्मीर में जनमत संग्रह की बात पिछले सदी की है.

प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन महासभा में बताया कि हम कश्मीर में आये बाढ़ के समय पाक अधिकृत कश्मीर में भी सहायता करने के लिये तैयार थे. उल्लेखनीय है कि भारत के इस प्रस्ताव को उस समय पाक सरकार ने खारिज कर दिया था. गौरतलब है कि कश्मीर में आये बाढ़ के समय देश की सेना ने 2 लाख से उपर कश्मीरियों की जान बचाई.

न्यूयार्क में यूएन मुख्यालय के सामने जहां भारी तादात में अमरीका में रहने वाले भारतवंशी मोदी के स्वागत में उमड़ पड़े थे वहीं, पाक अधिकृत कश्मीर से आया एक दल वहां कश्मीर की आजादी के लिये बैनर उठाये था. जाहिर सी बात है कि शुक्रवार को पाक प्रधानमंत्री के भाषण के समय प्रदर्शनकारियों ने कश्मीर की आजादी के लिये बैनर न उठाकर साबित कर दिया कि उनका उद्देश्य भारत के प्रधानमंत्री मोदी के सामने विरोध प्रकट करने से था. इससे आसानी से समझा जा सकता है कि कश्मीर की आजादी के लिये उठे बैनर वास्तव में प्रायोजित प्रकृति के थे.

प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन महासभा में पश्चिमी एशिया में बढ़ते आतंकवाद की बात उठाई तथा कहा कि कई देश आज आतंकवादियों के पनाहगार बने हुए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि हमने अपने शपथ ग्रहण के दिन से ही पड़ोसियों के साथ संबंध बढ़ाने पर जोर दिया परन्तु आपसी बातचीत शांति के माहौल में ही हो सकती है. प्रधानमंत्री मोदी ने यूएन महासभा में कहा कि आतंक के साये में शांति वार्ता संभव नहीं है. उल्लेखनीय है कि पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने यह बात उठाई थी कि भारत ने वार्ता को रद्द् कर दिया.

यूएन महासभा में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण बहुप्रतीक्षित था तथा देश के साथ विदेशी शासक तथा राजनयिक भी उनके कश्मीर के बारे में नीतियों को जानने के लिये उतावले थे. प्रधानमंत्री मोदी ने 21वीं में इस सदी के जरूरतों के माफिक चलने की बात करके साफ कर दिया कि भारत की कश्मीर पर क्या नीति है? जाहिर है कि भारत कश्मीर समस्या का समाधान द्विपक्षीय समझौते से चाहता है.

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