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अब सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण

नई दिल्ली | संवाददाता: केंद्र सरकार ने अब सामान्य वर्ग के गरीबों को भी आरक्षण देने का फ़ैसला किया है. हालांकि ऐसा करने के लिये केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा.

कैबिनेट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लिए 10% आरक्षण को मंज़ूरी दी है. साथ ही ये भी बताया है कि ग़रीब सवर्णों के लिए ये कोटा आरक्षण की मौजूदा तय सीमा 50 फ़ीसदी से अलग होगा.

अभी देश में कुल 49.5 फ़ीसदी आरक्षण है. अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फ़ीसदी, अनुसूचित जातियों को 15 फ़ीसदी और अनुसूचित जनजाति को 7.5 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था है.

बताया जा रहा है कि ग़रीब सवर्णों को प्रस्तावित 10% आरक्षण मौजूदा 50 फ़ीसदी की सीमा से अलग होगा.

इस मंज़ूरी के बाद आर्थिक रूप से कमज़ोर सवर्णों के लिए सरकारी नौकरियों में अलग से 10% कोटा होगा. हालाँकि ऐसा करने के लिये मोदी सरकार को इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा.

इधर कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाये हैं.

कांग्रेस ने एक बयान में कहा, “समाज के सभी वर्गों के ग़रीब लोगों को शिक्षा और रोजगार का मौका मिले, हम इस दिशा में उठाए जाने वाले हर कदम का समर्थन करेंगे और उसके पक्षधर भी रहेंगे. लेकिन हक़ीक़त ये है कि चार साल आठ महीने बीत जाने के बाद तब मोदी सरकार को ग़रीबों की याद आई. ये अपने आप में मोदी सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है.”


कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “कांग्रेस हमेशा आर्थिक तौर से ग़रीबों के आरक्षण और उत्थान की समर्थक और पक्षधर रही है. दलित, आदिवासियों और पिछड़ों के संवैधानिक आरक्षण से कोई छेड़छाड़ न हो और समाज के ग़रीब लोग, वो चाहे किसी भी जाति और समुदाय के हों, उन्हें भी शिक्षा और रोजगार का मौका मिले.”

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि उनकी पार्टी इस फ़ैसले का स्वागत करती है, लेकिन कहा कि क़ानून में संशोधन लोकसभा चुनावों से पहले होना चाहिए. केजरीवाल ने ट्वीट किया, “चुनाव के पहले भाजपा सरकार संसद में संविधान संशोधन करे. हम सरकार का साथ देंगे. नहीं तो साफ़ हो जाएगा कि ये मात्र भाजपा का चुनाव से पहले का स्टंट है.”


इधर लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने कहा, “ग़रीबी की एक ही जाति होती है. हम लोग 15 फ़ीसदी की मांग कर रहे थे, लेकिन 10 फ़ीसदी दिया गया. हम इस फ़ैसले का स्वागत करते हैं.”

गौरतलब है कि पिछली बार 2014 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने चुनावों से ठीक पहले जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल कर आरक्षण का लाभ देने की घोषणा की थी, लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था, “पिछड़ेपन के लिए सिर्फ़ जाति को आधार नहीं बनाया जा सकता. पिछड़ापन का आधार सिर्फ़ सामाजिक होना चाहिए न कि शैक्षणिक या आर्थिक रूप से कमज़ोरी.”

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