कलारचना

एक फिल्म में नौ किरदार यानी संजीव कुमार

मुंबई | समाचार डेस्क: आज एक अभिनेता का किसी फिल्म में दोहरी या तिहरी भूमिका निभाना बड़ी बात समझी जाती है, लेकिन संजीव कुमार ऐसे अदाकार थे, जिन्होंने फिल्म ‘नया दिन नई रात’ में एक या दो नहीं, नौ अलग-अलग किरदार निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया था. भारतीय सिनेमा जगत में संजीव कुमार को एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने नायक, सहनायक, खलनायक और चरित्र भूमिकाओं से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई.

उनके अभिनय की यह विशेषता रही कि वह किसी भी तरह की भूमिका में खुद को ढाल लेते थे. फिल्म ‘कोशिश’ में एक गूंगे की भूमिका हो या ‘शोले’ में ठाकुर की भूमिका. ‘सीता और गीता’ में लवर बॉय की भूमिका हो या ‘नया दिन नई रात’ में नौ अलग-अलग भूमिकाएं, सभी में उनका अभिनय लाजवाब रहा. इस फिल्म में संजीव ने लूले-लंगड़े, अंधे, बूढ़े, बीमार, कोढ़ी, हिजड़े, डाकू, जवान और प्रोफेसर के किरदार को निभाकर जीवन के नौ रसों को रुपहले पर्दे पर साकार किया.

मुंबई में 9 जुलाई, 1938 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे संजीव कुमार का असली नाम हरिभाई जरीवाला था. बचपन से ही वह फिल्मों में नायक बनने का सपना देखा करते थे. इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया. वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘आरती’ के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया, जिसमें वह पास नहीं हो सके. संजीव को सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘निशान’ में काम करने का मौका मिला.

इसी दौरान वर्ष 1960 में उन्हें फिल्मालय बैनर की फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला. वर्ष 1960 से वर्ष 1968 तक संजीव कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे. फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए. इस बीच उन्होंने ‘स्मगलर’, ‘पति-पत्नी’, ‘हुस्न और इश्क’, ‘बादल’, ‘नौनिहाल’ और ‘गुनाहगार’ जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई.

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘शिकार’ में वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए. यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेद्र पर केंद्रित थी, फिर भी संजीव धर्मेद्र जैसे अभिनेता की मौजूदगी में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे. इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का ‘फिल्म फेयर अवार्ड’ भी मिला.

वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘खिलौना’ की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बनाई. वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘दस्तक’ में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. वर्ष 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘कोशिश’ में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला. इस फिल्म में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया.

वर्ष 1975 में प्रदर्शित रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ में वह अभिनेत्री जया भादुड़ी के ससुर की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके. हालांकि संजीव कुमार ने फिल्म ‘शोले’ के पहले जया भादुड़ी के साथ ‘कोशिश’ और ‘अनामिका’ में नायक की भूमिका निभाई थी. वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में उन्हें महान निर्देशक सत्यजित रे के साथ काम करने का मौका मिला.

इसके बाद संजीव कुमार ने मुक्ति (1977), त्रिशूल (1978), पति पत्नी और वो (1978), देवता (1978), जानी दुश्मन (1979), गृहप्रवेश (1979), हम पांच (1980), चेहरे पे चेहरा (1981), दासी (1981), विधाता (1982), नमकीन (1982), अंगूर (1982) और हीरो (1983) जैसी कई सुपरहिट दी और उसके बाद तो वह दर्शकों के दिल पर राज करने लगे.

अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिल में खास पहचान बनाने वाले इस महान कलाकार को 6 नवंबर, 1985 को दिल का गंभीर दौरा पड़ा और उन्होंने दुनिया से विदा ले ली.

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