बेमेतरा

मगरमच्छ से भिड़ गईं महिलाएं

रायपुर । एजेंसी: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 70 किलोमीटर दूर बेमेतरा के बाबा मोहतरा में सोमवार को सुबह 11 बजे महिलाओं और मगरमच्छ के बीच जमकर जंग हुई और इस जंग में महिलाओं ने 110 वर्ष के मगरमच्छ को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.

आखिरकार एक महिला को मगरमच्छ का निवाला बनने से पहले ही तीन महिलाओं ने उसे बचा लिया. बेमेतरा जिला मुख्यालय से महज बारह किमी दूर महंत इश्वरिशरण देव की पौराणिक नगरी बाबा मोहतरा स्थित है. यहां ग्रामीणों के लिए चार बड़े बड़े तालाब पुराने जमाने से निर्मित हैं. इन्हीं में यहां के महंत ने वर्षों से मगरमच्छ पाल रखा है.

बुजुर्ग ग्रामीणों की माने तो गंगाराम नाम का यह मगरमच्छ तकरीबन 110 वर्षो का होने जा रहा है. आज तक इसने किसी भी इंसान या जानवर पर हमला नहीं बोला था. आराम से यह तालाब में इंसानों के बीच रहता था. जानवरों को भी इसने कभी कुछ नहीं किया.

घटना वाली दोपहर को तालाब में नहाने आई महिला के पांव पर उसने अपने दांत गाड़ दिए. इससे पहले कि वह महिला को खींचकर गहरे पानी में ले जाता वहां मौजूद महिलाओं ने अद्भुत साहस दिखाया. उन्होंने महिला का हाथ पकड़कर खींचा. मगरमच्छ के मुंह से पांव छूटे, लेकिन उसने फिर दूसरे हिस्से में दांत गड़ा दिए. फिर भी महिलाएं विचलित नहीं हुईं और उसका हाथ नहीं छोड़ा.

आखिरकार मगरमच्छ को वहां से भागना पड़ा. बाद में घायल महिला को इलाज के लिए रायपुर के आंबेडकर अस्पताल में भर्ती कराया गया.

कुमारी बाई सुबह करीब 11.30 बजे नहाने के लिए तालाब में उतरी. तट पर मौजूद मगरमच्छ ने कुमारी के दाएं पैर को पकड़ लिया. उसने बचाने के लिए आवाज लगाई. आसपास नहा रही महिलाओं सुगन साहू, सौहद्रा बाई और एक अन्य महिला ने कुमारी बाई के हाथ को पकड़ कर खींचने की कोशिश की, लेकिन वह बाहर नहीं आ रही थी.

महिलाओं ने तालाब में फटी मच्छरदानी को फेंका ताकि मगरमच्छ घबराए. ऐसा करने से मगरमच्छ कुछ पल के लिए चौंक गया, उसने दाएं पैर को छोड़कर बाएं पैर को जकड़ लिया. इसके बाद भी महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी. आखिरकार महिलाओं ने मगरमच्छ को पीछे हटने को मजबूर करके उसे तालाब से बाहर निकाल लिया.

ग्रामीणों के अनुसार यहां वर्षो पहले मगरमच्छ को पाला गया. बताया जाता है कि पहले यहां 5-6 नर व मादा मगरमच्छ थे. कई बार तालाब में मगर के अंडे भी देखे गए. बाद में एक-एक कर मरते गए. कुछ को मगरमच्छ ही खा गए. अभी सिर्फ एक ही मगरमच्छ जीवित है.

गांव के राजू साहू ने वीएनएस को बताया की करीब 30-40 साल पहले यही मगरमच्छ तालाब से निकल कर दो किलोमीटर दूर ग्राम बहेरा के खेत में पहुंच गया था. गांव वालों ने उसे पकड़कर फिर से तालाब में छोड़ा था. उस दौरान मगरमच्छ का पूंछ लगने से रति बाजीगीर घायल हो गया और 6 माह बाद उसकी मौत हो गई.

रघुनंदन वर्मा ने बताया कि तालाब के पास पुलिया में दो माह पहले मगरमच्छ का मुंह फंस गया था. बाद में लोगों ने निकालकर उसे तालाब में छोड़ा. इसी तरह कई बार यह बरसात के दिनों में पानी से बाहर निकलकर गांव की गलियों में आता रहा है.

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