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हिन्दुस्तानियों की बदसलूकी…

सुनील कुमार
दिल्ली की खबर है कि देश के सबसे बड़े अस्पताल, एम्स, में पहुंचने वाले मरीजों और उनके साथ के लोगों की सबसे बड़ी नाराजगी की अकेली वजह वहां के कर्मचारियों का बर्ताव है. मरीजों से किए गए एक सर्वे के विश्लेषण से यह नतीजा निकला है और यह गिने-चुने मरीजों की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि करीब एक लाख लोगों की प्रतिक्रियाओं में सबसे अधिक, 33 फीसदी लोग बर्ताव को लेकर असंतुष्ट मिले हैं.

अब ये सरकारी सर्वे के, अपने अस्पताल के बारे में आंकड़े हैं, और इसलिए इसके गलत होने का आसार नहीं दिखता है. ऐसे में जब हम देश के बाकी अस्पतालों, बाकी सरकारी दफ्तरों, या कोर्ट-कचहरी को देखें, तो तकरीबन सभी जगह लोगों के साथ, ग्राहकों या मरीजों के साथ, सरकारी अमले का बर्ताव ऐसा ही दिखता है. दूसरी तरफ जो सत्तारूढ़ तबका है, या कि मीडिया और कारोबार से जुड़ा हुआ पैसे वाला तबका है, उसका हाल देखें तो सरकारी कर्मचारी ताकतवर से उलझने के बजाय उसके सामने आमतौर पर बिछ जाते हैं. बाकी जनता से उनकी उम्मीद रहती है कि वह आकर उनके सामने बिछ जाए.

अभी जिस तरह केन्द्रीय वित्तमंत्री अरूण जेटली ने अपने बजट के दौरान कहा कि हिन्दुस्तानियों का मिजाज टैक्स चोरी का है, तो यह बात महज टैक्स तक सीमित नहीं है, यह जिम्मेदारियों से जुड़ी हुई हर बात तक बिखरी हुई है कि हिन्दुस्तानी लोग अपनी जिम्मेदारियों से कतराते हैं, और दूसरी तरफ अधिकारों का दावा करने में वे दूसरे लोगों के मुकाबले बहुत आगे भी हैं. नतीजा यह होता है कि सरकारी सेवाओं में काम करने वाले कर्मचारियों का कामकाज इतना खराब होता है, बर्ताव इतना खराब होता है कि हिन्दुस्तान में सरकारी काम को गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है.

किसी निजी कारोबार में किसी के बर्ताव से शिकायत हो तो लोग कहते हैं कि ऐसी बदतमीजी से बात की जा रही थी कि मानो सरकारी दफ्तर हों. जब किसी सामान की क्वालिटी बहुत ही घटिया हो तो उसके बारे में कहा जाता है कि वह सरकारी-सप्लाई के लिए है. दुकानदार खुलकर कहते हैं कि अच्छी क्वालिटी चाहिए, या गवर्नमेंट-सप्लाई के लिए. और घटिया क्वालिटी का यह पैमाना बर्ताव से लेकर माहौल तक, और गंदगी से लेकर रिश्वतखोरी तक फैल जाता है.

तकलीफ तब कुछ अधिक होती है जब हिन्दुस्तान में निजी कारोबार में भी बहुत से कर्मचारियों, और बहुत से मालिकों का भी, बर्ताव सरकारी असर से बिगडऩे लगता है, और कदम-कदम पर ऐसा लगता है कि अपने कारोबार के भले के बजाय बहुत से लोग ग्राहक से उलझने और उससे बुरा सुलूक करने में खासी मेहनत करते हैं. इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि भारत के छोटे कारोबार ने अभी तक बड़े संगठित कारोबार की चुनौती झेली नहीं थी, और बिना महत्वाकांक्षा वाले छोटे-छोटे कारोबारी अपने दायरे में संतुष्ट चले आ रहे थे.

लेकिन अब वक्त इस रफ्तार से बदला है कि लोगों को ऑनलाईन खरीदी करते हुए किसी कारोबारी या दुकान के किसी कर्मचारी का चेहरा भी नहीं देखना है, और सौ-पचास रूपए के सामान भी लोग ऑनलाईन ऑर्डर करके बुलाने लगे हैं. भारत में जो तबका ऑनलाईन खरीदी कर सकता है, उसकी बाकी सहूलियत के अलावा और एक वजह यह है कि यह तबका बाजार की बदसलूकी से थका हुआ है, और ऑनलाईन बदतमीजी होती नहीं है.

हिन्दुस्तान में कारोबार, सरकार, और किसी भी किस्म की जनसेवा से जुड़े हुए लोग अपनी जिंदगी इन्हीं कामों में खपाते हैं. वे काम अच्छा करें, या बुरा करें, जिंदगी का एक-एक दिन तो गुजरते ही जाता है. अब दुनिया भर से लोगों की बढ़ी हुई आवाजाही के चलते हिन्दुस्तानी कामगार का वास्ता देश के भीतर भी बहुत से विदेशियों से पड़ता है, और हिन्दुस्तान के बहुत से लोग काम करने दूसरे देशों में जाते भी हैं. ऐसे में जब हिन्दुस्तानियों का बर्ताव खराब रहता है, उनकी नीयत में ईमानदारी नहीं रहती है, किसी भी सैलानी को लूट लेने की सोच रहती है, किसी भी गोरे या काले को देखकर अपनी खुद की जुबान में उसे गाली देने या उसकी खिल्ली उड़ाने को जीभ खुजाने लगती है, तो दुनिया में ऐसे हिन्दुस्तानियों के लिए संभावनाएं घट भी जाती हैं.

सरकारी संस्कृति से निकलकर आया हुआ ऐसा बर्ताव निजी कारोबार तक बिखर जाता है, और लोगों को अपनी जिम्मेदारी से दूर धकेल देता है. देश की उत्पादकता सिर्फ काम के घंटों से तय नहीं होती, घंटों के हिसाब से तो सबसे अधिक काम मजदूर करते हैं, लेकिन वह मजदूरी सबसे अधिक उत्पादक नहीं होती, न उनके खुद के लिए, और न ही देश के लिए. जब ऐसी मजदूरी में हुनर की खूबी जुड़ती है, काम की उत्कृष्टता आती है, तभी वह काम अधिक उत्पादक हो पाता है. और ऐसी उत्कृष्टता में लोगों का बर्ताव एक बड़ी बात है, जिसके बिना उनकी बाकी की मेहनत, काम के घंटे अधिक काम के नहीं बचते.

इसलिए हिन्दुस्तान में जहां एक तरफ कौशल विकास या कौशल उन्नयन, या स्किल डेवलपमेंट के नारे हवा में तैर रहे हैं, वहां पर हुनर के साथ-साथ उत्कृष्टता की बाकी खूबियों को भी जोडऩा जरूरी है, क्योंकि बेहतर हुनर से उत्पादकता एक सीमा तक बढ़ सकती है, लोगों के बर्ताव से उसमें और बढ़ोत्तरी आ सकती है.

चीन जैसे देश में जहां दुनिया भर से लोगों का आना भी बढ़ा है, और चीन से कामगारों का बाकी दुनिया में जाना भी बढ़ा है, वहां पर इस नए अंतर्राष्ट्रीय अंतर संबंध के लिए अपनी पीढ़ी को तैयार भी किया जा रहा है. चीनी लोग राह चलते खखार कर थूकने के लिए बदनाम रहते आए हैं, अब चीन के भीतर जनता को सिखाया जा रहा है कि उनके ऐसे बर्ताव से विदेशी सैलानी किस कदर नफरत करने लगते हैं, और अगर वे दूसरे देशों में जाकर ऐसा बर्ताव जारी रखेंगे तो वहां उनकी इज्जत नहीं होगी. ऐसी बातों को औपचारिक रूप से हुनर की तरह ही सिखाया जा रहा है, और इसके नतीजे भी सामने आ रहे हैं. हिन्दुस्तान में अपने लोगों के बर्ताव को लेकर कोई चर्चा भी नहीं होती, विदेशी सैलानी हिन्दुस्तानियों के थूकने और मूतने को देखकर हक्का-बक्का रह जाते हैं कि किस तरह किसी साफ-सुथरी जगह को देखते ही हिन्दुस्तानी उसे गंदा करने के लिए किस हद तक कुलबुलाने लगते हैं.

और यह बात महज कर्मचारियों, नौकरों और कामगारों पर लागू नहीं होती, बहुत से छोटे-छोटे कारोबार में जहां पर मालिक खुद गल्ले पर बैठकर दुकान पर काबू रखते हैं, वहां उनका खुद का ध्यान भी ग्राहकों पर ठीक से नहीं रहता, और उनका बर्ताव भी बहुत खराब रहता है. ग्राहक खड़े रहें और दुकानदार फोन पर गप्प मारने में लगे रहें, पास में किसी दोस्त को बिठाकर उससे गप्प मारने में लगे रहें, सिगरेट-बीड़ी पीते रहें, या बदन के किसी ऐसे हिस्से को खुजाते रहें, जिसे देखकर ही चिढ़ होने लगे, तो ऐसे कारोबार में जाने से अगली बार लोग कतराने भी लगते हैं. जब लोगों के पास एक से अधिक दुकानों की आजादी होती है, तब बर्ताव की ऐसी छोटी-बड़ी खामियां किसी दुकान से ग्राहक छीन लेती हैं, और किसी अच्छे बर्ताव वाले दुकानदार को वे ग्राहक दिलवा देती हैं.

जिन लोगों को अपने देश की संस्कृति पर बहुत फख्र है, उन लोगों को अपने लोगों के बर्ताव के बारे में भी सोचना चाहिए, इसे कोई कानून बनाकर बेहतर नहीं किया जा सकता, इसे अपनी जिम्मेदारी को समझकर ही बेहतर किया जा सकता है.

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