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जिन्हें फांसी मिली थी, सुप्रीम कोर्ट ने रिहा किया

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ की अदालत ने जिन्हें फांसी की सज़ा सुनाई थी, सुप्रीम कोर्ट ने उन दो लोगों को रिहा करने के आदेश दिये हैं.

दोनों पर आरोप था कि वे शादी के लिये लड़की देखने जिस घर में पहुंचे थे, वहां मेजबानों के गहने देख कर उनकी नीयत डोल गई और उन्होंने घर के पांच लोगों की लूटपाट करने के बाद हत्या कर दी.

न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने दोनों आरोपी दिगंबर वैष्णव और गिरधारी वैष्णव की रिहाई का फैसला देते हुये कहा कि दोनों की फांसी में मुख्य बयान एक बच्ची का है, जो चश्मदीद गवाह भी नहीं है.

अदालत ने कहा कि जो सबूत पेश किये गये, वे भी विसंगतिपूर्ण हैं.

क्या था मामला

सारंगढ़ थाने के ग्राम खर्री के रहने वाले 27 साल के दिगंबर वैष्णव और ग्राम बरभाठा के 20 साल के गिरधारी वैष्णव 15 दिसंबर 2012 को शादी के लिए लड़की देखने बिलाईगढ़ थाने खपरीडीह आए थे.

अगले दिन सुबह घर की श्री बाई, सुभद्रा, कोंदी, अमरीका और माला की लाश पाई गई थी. मृतक सुभद्रा की 10 साल की बेटी चांदनी ने पुलिस को जानकारी दी कि उनके घर कल रात दो मेहमान आये थे.

इसके बाद पुलिस ने अपनी पड़ताल में दोनों को गिरफ्तार किया और उनके पास से लूटी गई नगद और गहने भी बरामद किये थे.

इसके बाद 14 माई 2014 को बलौदाबाज़ार की ज़िला एवं सत्र न्यायधीश रजनी दुबे ने दोनों आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई थी. फांसी की सज़ा को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा था.

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

अदालत ने कहा कि एक बच्चे की गवाही के साक्ष्य का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए क्योंकि बच्चे दूसरे के द्वारा बताए गए तरीके से प्रभावित हो सकते हैं और वो आसानी से सिखाए- पढ़ाए जा सकते हैं.

अदालत ने कहा कि बच्चे की गवाही के साक्ष्य को पहले पर्याप्त तरीके से खोजना होगा तभी इस पर भरोसा किया जा सकता है. यह कानून से कहीं अधिक व्यावहारिक ज्ञान का नियम है.

अदालत ने कहा कि यह ध्यान दिया गया कि जिस व्यक्ति ने फिंगर प्रिंट के नमूने लिए, उसकी अभियोजन द्वारा जांच नहीं की गई. यहां तक ​​कि एफआईआर में, किसी भी सामान या धन की चोरी या गुम होने की कोई सूचना दर्ज नहीं है.

अदालत ने कहा कि जब कथित रूप से बरामद किए गए पैसे को मृतक के घर से चोरी होने का हवाला दिया गया तो यह अविश्वसनीय है क्योंकि क्राइम सीन से चोरी या लूट के दावे का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी मौजूद नहीं है.

अदालत ने अंतिम बार एक साथ देखे जाने के मुद्दे पर कहा कि अंतिम रूप से एक साथ देखे जाने के कारक को एक विकट परिस्थिति के रूप में निर्मित करने के लिए मृत शरीर को देखने और बरामद करने के समय के बीच निकटता होनी चाहिए. यह स्वीकार करते हुए कि अभियुक्त ने अपराध किया है, यह अनुमान लगाना मुश्किल है.

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