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इच्छा मृत्यु को सुप्रीम कोर्ट की मान्यता

नई दिल्ली | संवाददाता: सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु की वसीयत को कानूनी मान्यता दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत को शर्तों के साथ कानूनी मान्यता दे दी है.

ज्ञात रहे कि कॉमन कॉज नामक एक स्वयंसेवी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जिस तरह नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है, उसी तरह उन्हें मरने का भी अधिकार है. इस पर केंद्र सरकार ने कहा कि इच्छा मृत्यु की वसीयत लिखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, लेकिन मेडिकल बोर्ड के निर्देश पर मरणासन्न व्यक्ति का सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है.

इस मामले की सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने लगभग पांच महीने बाद आज फैसला सुनाया कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि कब वह आखिरी सांस ले. कोर्ट ने कहा कि लोगों को सम्मान से मरने का पूरा हक है. अदालत ने पिछले साल की 11 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था.

इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत यानी लिविंग विल में कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए. अब कोई मरणासन्न व्यक्ति ‘लिविंग विल’ के जरिए अग्रिम रूप से बयान जारी कर यह निर्देश दे सकता है कि उसके जीवन को वेंटिलेटर या आर्टिफिशल सपॉर्ट सिस्टम पर लगाकर लम्बा नहीं किया जाए.

दुनिया के कई देशों में ऐसा प्रावधान है लेकिन भारत में इसे मंजूरी नहीं दी गई थी.

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