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तमिलनाडु और वहां का असंतोष

रजनीकांत और कमल हासन तमिलनाडु में राजनीतिक खालीपन को भरने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन प्रदेश का राजनीतिक भविष्य अनिश्चित ही लग रहा है. ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडगम की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के निधन के बाद का दो साल बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है. इस बीच द्रविड़ मुनेत्र कडगम के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधी की राजनीतिक सक्रियता भी घटी है. इससे वहां की राजनीति में रिक्तता आई है. तमिलनाडु में फिल्मों से आकर कई लोग बड़े नेता बने हैं. ऐसे में रजनीकांत और कमल हासन का राजनीति में आना हैरान करने वाला नहीं है.

तमिलनाडु में पहले दो द्रविड़ पार्टियों का ही दबदबा रहा है. दूसरी राष्ट्रीय और स्थानीय राजनीतिक ताकतें इनके साथ ही रही हैं. इन दोनों पार्टियों ने कल्याणकारी शासन तो अपनाया लेकिन भ्रष्टाचार भी खूब रहा. इन दोनों ने यह सुनिश्चित किया कि प्रदेश में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी सहयोगी भूमिका में ही रहें. ये दोनों पार्टियां बारी-बारी से सत्ता में आती रही हैं.

2005 में फिल्मी दुनिया से विजयकांत राजनीति में आए. उनकी पार्टी डीएमडीके को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में तकरीबन 10 फीसदी वोट मिले. इससे पता चलता है कि तमिलनाडु के लोग विकल्प चाहते हैं. रजनीकांत और कमल हासन इसी तरह का प्रदर्शन दोहराना चाहते हैं लेकिन अलग तरह से. रजनीकांत की छवि सुपरस्टार की है और उनके प्रशंसकों की भारी संख्या है. उन्होंने पहले भी कई बार राजनीति में आने का संकेत दिया है. 1996 में उन्होंने जयललिता के खिलाफ एक स्टैंड लिया था. लेकिन वे सक्रिय राजनीति में नहीं आए. लेकिन हाल के सालों में उन्होंने अपनी लोकप्रियता के आधार पर राजनीतिक दिशा में बढ़ने की कोशिश की है. भाजपा उनके पास आने की कोशिश करती दिखती है. लेकिन राज्य में हिंदुत्व वाली राजनीति को पसंद करने वाले बहुत लोग नहीं हैं.

हालांकि, रजनीकांत ने खुद को भाजपा से खुद को दूर दिखाने की ही कोशिश की है. उन्होंने बार-बार सुशासन का मुद्दा ही उठाया है. अपने प्रशंसकों की संख्या को देखते हुए उन्होंने घोषणा कर दी है कि प्रदेश की सभी 234 सीटों पर उनकी पार्टी चुनाव लड़ेगी. उन्होंने अब तक किसी मुद्दे पर सार्वजनिक स्टैंड नहीं लिया और न ही किसी विचारधारा का प्रचार कर रहे हैं. वे कहते हैं कि एम.जी. रामचंद्रन की सफलता को वे दोहराना चाहते हैं. रामचंद्रन ने डीएमके से अलग होकर एआईएडीएमके का गठन किया था. यह बात भी कही जा रही है कि रजनीकांत व्यक्तित्व आधारित राजनीति गढ़ेंगे और इससे भाजपा को फायदा होगा.

दूसरी ओर कमल हासन की छवि तरह-तरह की भूमिकाएं करने वाले अभिनेता की है. रजनीकांत के मुकाबले उनके प्रशंसक कम हैं. लेकिन उनकी अपनी एक अलग प्रतिष्ठा है. इसके पहले उन्होंने कभी भी राजनीति में आने की इच्छा नहीं दिखाई. लेकिन वे पहले भी तार्किक आंदोलनों और प्रगतिशील अभियानों के पक्ष में बोलते रहे हैं. पिछले साल कमल हासन ने राजनीति में आने की तैयारी कर ली थी. उन्होंने खुद को मध्यमार्गी के तौर पर प्रस्तुत किया है. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम रखा है मक्कल नीथि मैयम. इसका मतलब होता है जनता न्याय केंद्र. रजनीकांत के उलट उन्होंने सांप्रदायिक राजनीति का लगातार विरोध किया है और भाजपा का भी. कृषि संकट, जल बंटवारे, पर्यावरण जैसे विषयों पर उन्होंने लगातार आवाज उठाई है.

इन दोनों फिल्मी अभिनेताओं के राजनीति में आने की मूल वजह जयललिता के निधन के बाद खाली हुई राजनीतिक जगह है और मौजूदा सरकार की बढ़ती अलोकप्रियता. नेतृत्व के लिए डीएमके की करुणानिधी सरकार पर निर्भरता भी उसे एआईएडीएमके का विकल्प नहीं बनने दे रही है. रजनीकांत और कमल हासन दोस्त होने के बावजूद अलग ढंग से फिल्मी दुनिया में आगे बढ़े हैं. रजनीकांत को स्टार बनाने में उनके व्यक्तित्व की भूमिका रही है. वहीं कमल हासन अभिनय के जरिए लोकप्रिय हुए हैं. राजनीति में भी दोनों अलग-अलग दिखते हैं. अब यह देखा जाना बाकी है कि इनमें कौन सफल होता है और मध्यम-आय वर्ग में आते राज्य को एक नई दिशा देता है.
1966 से प्रकाशित इकॉनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली के नये अंक का संपादकीय

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