पास-पड़ोस

यूपी चुनाव: भाजपा की अग्नि परीक्षा

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: यूपी का चुनाव भाजपा के लिये परीक्षा की घड़ी है. यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे तय करेंगे कि देश के बहुचर्चित नोटबंदी का जनता पर क्या प्रभाव पड़ा है.

नोटबंदी के आलोचकों का मानना है कि इससे देश में मंदी, छंटनी बढ़ी है जिसका भाजपा को मिलने वाले मतों पर विपरीत प्रभाव पड़ना लाजिमी है. वहीं, भाजपा इसे काले धन के खिलाफ सबसे बड़ी तथा साहसिक फैसला बता रही है.

2014 के लेकसभा चुनाव में भाजपा को यूपी के 80 लोकसभा सीटों में से 71 तथा उसकी सहयोगी पार्टी को 2 सीटें मिली थी. यूपी में मिली अविश्वनीय जीत ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया था. उस समय भाजपा नेता अमित शाह ने पार्टी की तरफ से यूपी की कमान संभाली थी.

दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने के बाद अमित शाह को पार्टी अध्यक्ष पद से नवाज़ा गया था. इस बार भी यूपी की कमान अमित शाह के हाथों में ही है. परन्तु विरोधी दल दावा कर रहें हैं कि नोटबंदी ने जमीनी हकीकत को बदलकर रख दी है.

लोकसभा चुनाव में भाजपा को दिल्ली की सभी 7 सीटें मिली थी. लेकिन इसके बाद हुये दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को 70 में से महज 3 विधानसभा सीटें ही मिल पाई थी. लोकसभा चुना के बाद जितने भी विधानसभा चुनाव हुये उनमें भाजपा का मत प्रतिशत सबसे ज्यादा दिल्ली में ही 13 फीसदी गिरा था.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 71 सीटें तथा 42.63 फीसदी मत, बसपा को 0 सीट तथा 19.77 फीसदी मत, कांग्रेस को 2 सीट तथा 7.53 फीसदी मत तथा समाजवादी पार्टी को 5 सीटें तथा 22.35 फीसदी मत मिले थे.

विपक्षी दावा कर रहें हैं कि नोटबंदी के कारण भाजपा की हालत इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव के समान ही होने जा रही है.

नोटबंदी के फैसले के पहले भी माना जा रहा था कि भाजपा यूपी विधानसभा चुनाव में जीत सकती है भले ही उसे लोकसभा चुनाव के समय के मोदी लहर के समान मतन मिले पर परन्तु जीत का सेहरा उसके ही सिर पर बंधने वाला है.

8 नवंबर की नोटबंदी के बाद से यूपी के छोटे तथा मझोले किसान परेशान हैं. यहां के उद्योग धंधों पर भी मंदी का अच्छा-खासा प्रभाव पड़ा है.

भाजपा को अपने सांसदों के ग़ुस्से का जायज़ा पिछले सप्ताह लखनऊ में संघ और पार्टी की संयुक्त बैठक में दिखा. उस बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में यूपी के सभी सांसदों ने एक स्वर में एक ही मांग रखी कि अगर चुनाव जीतना है तो यूपी के बैंकों में तुरंत धन उपलब्ध करायें.

लेकिन जब पूरे देश पर ही करेंसी की समस्या हो तो अकेले यूपी में इसकी उपलब्धता कैसे सुनिश्चित कराई जा सकती है. वैसे सरकार का पूरा जोर अब कैशलेस लेनदेन पर आकर टिक गया है.

उधर यूपी की जमीनी हकीकत यह है कि कैश की कमी के कारण किसानों के धान नहीं बिक पा रहें हैं. यदि बिक भी रहें हैं तो 1400 रुपया क्विंटल बिकने वाला धान 600-700 रुपये क्विंटल की दर से बिक रहा है. पैसे की तंगी से अगले फसल के लिये बीज और खाद का जुगाड़ कैसे होगा किसानों को तो यही चिन्ता खाये जा रही है.

यूपी के सुल्तानपुर ज़िले के किसान हरिलाल ने बीबीसी से कहा, ”भइया, पानी लगाय क (सिंचाई) डीज़ल कहाँ ले ख़रीदें. फ़सल को पाला मार रहो है.”

वहीं, गोमती नदी में मछली पकड़ कर गुज़ारा करने वाले मछुआरे बहोरन प्रसाद बीबीसी से कहते हैं – “मंडी में ग्राहक नहीं है. मछली बिकने की जगह सड़ रही है. सुबह हमारा परिवार शकरकंदी उबाल कर खा रहा है और शाम को हम गाँजा पीकर सो जाते हैं.”

दूसरी तरफ मज़दूर नेता दुर्गा प्रसाद मिश्रा बीबीसी से दावा करते हैं कि उनके संपर्क में कई मज़दूर हैं जिन्हें 9 नवंबर के बाद या तो काम नहीं मिला है और अगर मिला है तो मज़दूरी नहीं मिली है.

अगर जमीनी हकीकत यही है तो भाजपा के लिये यूपी विधानसभा चुनाव की डगर कठिन हो सकती है. इस बीच समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस के गठबंधन की खबरें अलग से जोर मार रही है.

लोकसभा चुनाव के नतीजों के अनुसार सपा तथा कांग्रेस को मिलाकर 29.88 फीसदी मत मिले थे. जबकि भाजपा को 42.63 फीसदी मत मिले थे.

इस तरह से भाजपा को दोनों के गठबंधन के मुकाबले 12.75 फीसदी मत ज्यादा मिलें थे. इस तरह से यदि नोटबंदी के कारण भाजपा के मत 13 फीसदी गिरते हैं तो उसके लिये यूपी में सरकार बनाना सपना ही बनकर रह सकता है.

हालांकि, इन जमीनी हकीकतों से भाजपा कार्यकर्ता तथा नेतृत्व भी भली भांति परिचित है. इस बीच कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टी अपने पत्ते कितनी कुशलता से फेंकते हैं खेल उस पर भी निर्भर करता है. दूसरी तरफ, बहुजन समाज पार्टी का मानना है कि सपा के पारिवारिक दंगल के बाद जनता उसे ही वोट देगी.

इसीलिये कहा जा रहा है कि यूपी विधानसभा का चुनाव भाजपा के लिये अग्नि परीक्षा साबित होने जा रहा है जिससे उसके दावें कितने सटीक हैं उसका पता चल जायेगा क्योंकि इस बार यूपी में मोदी लहर उनका साथ नहीं देने जा रही है वरन् उसके उलट उसे नोटबंदी से प्रभावितों के गुस्से का सामना करना है.

One thought on “यूपी चुनाव: भाजपा की अग्नि परीक्षा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!