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शतरंज के बोर्ड पर पैदल !!

बादल सरोज
सुबह की शुरुआत किसी ऐसी चिंताजनक खबर से हो जो आपका दिन ही नहीं आपके देश का भविष्य भी उलट पुलट डाले, पहले ऐसा कम ही होता था, मगर इन दिनों यह आम बात है. अर्थनीति से मौसम तक, घरेलू माहौल से विदेश नीति तक, इन दिनों ऐसी खबरों की भरमार है. भारत और अमरीका के बीच साजो-सामान के विनिमय पर सिद्धांतत: मंगलवार को हुए समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के सामान, अड्डे का इस्तेमाल कर सकेंगी. इस मुद्दे को लेकर पिछली संप्रग सरकार के समय समझौता नहीं हो पाया था. पहले भारत का मानना था कि साजो-सामान समझौते को अमरीका के साथ सैन्य गठबंधन के तौर पर देखा जाएगा. बहरहाल एलएसए के साथ भारत हर मामले के आधार पर निर्णय करेगा. एलएसए तीन विवादास्पद समझौते का हिस्सा था, जो अमरीका भारत के साथ लगभग एक दशक से हस्ताक्षर करने के लिए प्रयासरत था.

खबर है कि अमरीका और भारत के बीच एक रणनीतिक समझौता तैयार हो चुका है. 10 साल तक भारतीय सरकारों के कान उमेठने, दबाब बनाने और लुभाने मनाने के सारे धतकरम आजमाने के बाद भी अंकल सैम जो नहीं करवा पाये, वह अब उनके भतीजे करने के लिए राजी हो गये हैं. लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट नामके इस करार के बाद इंडिया दैट इज भारत अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में अमरीका का सहयोगी बन जाएगा. हमारे यहां उनके सैनिक अड्डे होंगे, उनकी दुश्मनियो वाले बियाबान दूर दराजों में मरने मारने हमारे सैनिक जाएंगे.

दुनिया के सबसे बलशाली राष्ट्र का सहयोगी बनने को सौभाग्य और बड़ी विजय के रूप में प्रचारित किया जाना तय है. पूरे पन्नों के रंगीन विज्ञापन इस उपलब्धि का महिमा मंडन करेंगे. प्राइम और नॉट सो प्राइम टाइम में इसे लेकर गर्जन तर्जन होंगे. सप्ताह भर के शोरशराबे के बाद देश आईपीएल के क्वार्टर और सेमी फाइनलों की ओर बढ़ लेगा. इन दिनों हमने आपदाओं को सम्पदा के रूप में लेने की महारत को “बब्बा मर गए चलो अच्छा हुआ, एक खटिया खाली हुयी” से ऊपर उठाकर सैकड़ों अकाल मौतों को मोक्ष निरूपित करने तक पहुंचा दिया है. वह विधा इस मामले में भी आजमाई जाना तय है.

थोड़ी देर के लिए कोलम्बस से बे ऑफ़ पिग्स, वियतनाम होते हुए सीरिया वाया ईराक़ तक की अमरीकी हिस्ट्री शीट अगर परे रख भी दें और अमरीकी विदेश नीति को खुद उनके श्रीमुखों के वचनों से ही जानें तो भी इस खतरनाक एलएसए समझौते की असलियत सामने आ जाती है.

सात अमरीकी राष्ट्रपिताओं में से सबसे बड़े वाले जार्ज वाशिंगटन के मुताबिक़ “किसी के साथ कोई स्थायी गठबंधन न बनाना अमरीकी विदेशनीति का मूल आधार है.” इसे हाल के दौर में सबसे क्रूर राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश के आप्तवचन” किसी भी संभावित क्षेत्रीय शक्ति को उभरने से पहले ही कुचल कर ही अमरीका के हित सुरक्षित किये जा सकते हैं ” से जोड़कर पढ़िए. एलएसए की असलियत समझ में आ जायेगी.

हाल के दौर के अमरीका के सबसे सुशील समझे जाने वाले राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के अनुसार हर रोज सुबह की चाय के वक़्त उन्हें एक ऐसी मोटी किताब से रूबरू होना पड़ता है जो दुनिया भर में हुयी मौतों, विनाश, पीड़ाओं और अराजकता की खबरों से भरी होती हैं. उनके मुताबिक़ अब अमरीका को पीछे रहकर अगुआई – लीडिंग फ्रॉम बिहाइंड – की रणनीति अपनानी होगी. शतरंज के खेल में खुद पीछे रहकर बाजी जीतने के लिए राजा को नए प्यादों की जरूरत है. इन प्यादों के साथ कोई स्थायी गठबंधन का सवाल राष्ट्रपिता वाशिंगटन ही निर्मूल कर गए हैं. इन प्यादों को अगले मोर्चे पर डटा कर बुश डॉक्टराइन अपने आप अमल में आ जायेगी.

हुक्मरान भले भूल जायें मगर देश नहीं भूल सकता कि प्रोजेक्ट ब्रह्मपुत्र के नाम पर अमरीकी नियंताओं ने भारत विभाजन का ब्लू प्रिंट बनाया था. इसे कभी खारिज भी नहीं किया गया. यह भी कि कोई 10 साल पहले अमरीकी विश्लेषकों ने चीन और भारत को अगले 50 वर्षों में अमरीका के लिये संभावित चुनौती करार दिया था. इन्हें मिटाने की योजनाएं बनाने के निर्देश दिए थे. सन् 65 या 71 के युध्दों और पाकिस्तान के साथ आज भी जारी रिश्तों को अनदेखा कर भी दें तो भी अमरीकी नीयत भारत के बारे में दीवार पर लिखी इबारत के रूप में सामने है. इसे न पढ़ने वाले ही एलएसए पर
मुग्ध हो सकते हैं.

अगले चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प जैसों के सत्ता में पहुँच जाने के बाद क्या होने वाला है, यह सोचकर खुद अमरीकी जनता भयभीत है. मगर हमारे शासक वर्गों की अमरीकापरस्ती ने उनके विवेक को शून्य सा कर रखा है.

भारत और अमरीका की, अब तक की विदेशनीतियों के लक्ष्य एक दूसरे के ठीक उलटे हैं. भारत जहां अग्निशामक यंत्र की तरह भूमिका निबाहना चाहता रहा है वहीँ अमरीका का हित आग को धधकाने में हैं. शासक इसे अनुलोम विलोम का योगासन समझने की भूल करेंगे तो इतिहास उन्हें टोनी ब्लेयर की तरह ही याद करेगा.

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