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उत्तराखंड में वित्तीय अनुशासन का मंत्र

इन्द्रेश मैखूरी | फेसबुक पर
कुछ शब्दों का अर्थ हुक्मरानों के मुंह से निकलते ही डरावना हो जाता है. आम तौर पर वित्तीय अनुशासन सुनने में अच्छा ही लगता है. लेकिन जैसे ही यह शब्द हुक्मरानों के मुंह से निकलता है, इसका अर्थ ही बदल जाता है. तब इसका अर्थ हो जाता है सुविधाओं में कटौती,रोजगार के अवसरों में कटौती.

दो दिन पहले उत्तराखंड के वित्त मंत्री प्रकाश पन्त ने भी वित्तीय अनुशासन के इस मन्त्र का जाप किया. प्रकाश पन्त जी ने कहा कि मितव्ययता बरतना जरुरी है. यह मितव्ययता न केवल वित्त विभाग बल्कि हर विभाग को बदलनी चाहिए. मितव्ययता बरतने का फार्मूला उन्होंने यह बताया कि तीन सालों से जो पद रिक्त हैं, उन्होंने फ्रीज कर दिया जाए.

इसका आशय यह है कि इन पदों पर आगे भी नियुक्ति न की जाए. इस तरह मितव्ययता और वित्तीय अनुशासन जैसे शब्दों से उत्तराखंड सरकार ने तीखी मार कर डाली उत्तराखंड के बेरोजगारों पर. सीधे-सीधे नहीं कहा कि रोजगार नहीं देंगे बल्कि वित्तीय अनुशासन और मितव्ययता की भूलभुलैया में रोजगार के अवसरों को हमेशा के लिए गुम होने के लिए छोड़ दिया है.

होना तो यह चाहिए था कि रोजगार के नए अवसरों का सृजन किया जाए. लेकिन इसके ठीक उलट उत्तराखंड सरकार ने पुराने पदों को ही समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. जिन पदों पर वित्त मंत्री के इस वित्तीय अनुशासन नामक मारक मन्त्र की कोपदृष्टि पड़ी है, उनकी संख्या 13 हजार के आसपास बतायी गयी है. इन पर नियुक्ति हो जाए तो हजारों युवाओं का रोजगार पाने का सपना पूरा हो सकता था. लेकिन उत्तराखंड सरकार ने उस सपने पर ग्रहण लगाने का बंदोबस्त कर दिया है.

लेकिन यह भी देख लिया जाए कि क्या मामला वाकई वित्तीय अनुशासन कायम करने का है? वित्तीय अनुशासन कायम करना ही होता तो राज्य सरकार सेवानिवृत्त नौकरशाहों पर सरकारी धन नहीं लुटा रही होती. अमर उजाला में छपी खबर के अनुसार उत्तराखंड के सचिवालय से लेकर विभिन्न सरकारी विभागों में 200 के आसपास ऐसे अफसर हैं, जो कि रिटायर हो कर भी सरकारी कुर्सियों पर जमे हुए हैं. मौजूदा सरकार ने ही जिन अफसरों को पुनर्नियुक्ति और सेवा विस्तार दे रखा है, उनकी संख्या 100 से अधिक है.

इन रिटायर अफसरों की सेवा में सरकार हर महीने दो करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर रही है. यह कमाल है कि बेरोजगारों को रोजगार देने से वित्तीय अनुशासन बिगड़ता हुआ देखने वाले वित्त मंत्री जी को रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी खर्चे पर पल रहे अफसरों से वित्तीय अनुशासन पर आंच आती नहीं दिखाई दी.

डबल इंजन की सरकार का यह क्या कमाल है कि जिनको रोजगार की रेल में बैठना है, उनके लिए दरवाजे बंद कर दिए हैं और जिनको घर भेजना है,उन्हें सरकारी खर्च पर घुमा रहे हैं !

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