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साल भर में भी वर्षा डोंगरे मामले की जांच नहीं

रायपुर | संवाददाता: रायपुर सेंट्रल जेल की सहायक जेल अधीक्षक रहीं वर्षा डोंगरे के मामले में एक साल से अधिक हो चुके हैं. लेकिन मामले की अब तक जांच नहीं हो पाई है. कथित रुप से माओवादियों के पक्ष में फेसबुक पर पोस्ट लिखने के कारण निलंबित कर दी गई वर्षा डोंगरे के मामले में विभाग की जांच कई महीनों से चल रही है. लेकिन सूत्रों का दावा है कि अब तक इस मामले में केवल एक व्यक्ति की गवाही हो पाई है.

इधर जांच को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि वर्षा डोंगरे ने जेल की गड़बड़ियों को लेकर जेल प्रशासन और सरकार को जो चिट्ठियां लिखी थीं, उन्हें जांच के बिंदू में शामिल ही नहीं किया गया है. सरकार ने केवल सिविल सेवा आचरण को अपनी जांच का बिंदू बनाया है. सवाल यही उठ रहा है कि जिन आरोपों को लेकर जांच की जा रही है, उनकी सच्चाई की जांच कौन करेगा?

गौरतलब है कि वर्षा डोंगरे ने राज्य सेवा आयोग में हुई गड़बड़ी की लंबी अदालती लड़ाई लड़ी थी, जिसके बाद राज्य सरकार मुश्किल में आ गई थी. इस मामले में वर्षा डोंगरे के पक्ष में फैसला आया था और राज्य के 52 डिप्टी कलेक्टर, एसडीएम जैसों की नौकरी पर बन आई थी. फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है.

इस बीच वर्षा डोंगरे ने राज्य में आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार को लेकर फेसबुक पर जो कुछ लिखा, उसमें सरकार को कटघरे में रखा गया था. वर्षा ने इस पोस्ट के बाद छुट्टी ली लेकिन जेल प्रशासन ने उनकी छुट्टी के आवेदन को अस्वीकार किया और इसके बाद आनन-फानन में जेल प्रशासन ने 6 मई 2017 को वर्षा डोंगरे को निलंबित कर दिया. वे अभी तक निलंबित हैं.

इस बीच वर्षा डोंगरे ने राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैंकरा को एक ज्ञापन सौंप कर जेल प्रशासन की नाराजगी की असली वजह बताई थी. जेल सूत्रों के अनुसार इस ज्ञापन की प्रतिलिपि राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री के अलावा मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं को भेजी गई है.

इस ज्ञापन में वर्षा डोंगरे ने लिखा था- “विगत दो वर्षों से नियमित रूप से महिला जेल, केन्द्रीय जेल, रायपुर के भीतर महिला बंदियों व उनके बच्चों के साथ मेडिकल अधिकारी व मेडिकल स्टॉफ के द्वारा किए जा रहे अमानवीय अत्याचार (प्रताड़ना) का विरोध करती रही हूँ एवं प्रत्येक गम्भीर घटनाओं को महिला प्रकोष्ठ रिपोर्ट बुक में अभिलिखित कर श्री केके गुप्ता जेल महानिरीक्षक एवं जेल अधीक्षक केन्द्रीय जेल रायपुर को अवगत कराया गया है.”

श्रीमती डोंगरे के अनुसार- “बावजूद इसके समय पर न्यायसंगत कार्रवाई नहीं किए जाने व अपराध को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण प्रदान किए जाने से महिला बंदियों व बच्चों पर अत्याचार और ज़्यादा बढ़ गया, जिससे बंदियों के जानमाल को नुक़सान पहुँचने की आशंकाओं के मद्देनज़र अपराध को रोकने के उद्देश्य से महिला प्रकोष्ठ रिपोर्टबुक क्रमांक-35 में दिनांक 4 फ़रवरी 2017 को कुल 11 पृष्ठों का विस्तृत रिपोर्ट अभिलिखित कर पीड़ित महिला बंदियों के बयान (कुल आठ पृष्ठों में ) सहित श्री आरआर राय, सहायक जेल अधीक्षक एवं श्री के के गुप्ता जेल उप महानिरीक्षक एवं जेल अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत किया गया. जिस पर न्यासंगत कार्रवाई करने के बजाय, ऐसे गंभीर एवं संवेदनशील समस्याओं को ढकते हुए दिनांक चार फ़रवरी 2017 को ही लिखित आदेश के तहत ना केवल मुझे महिला प्रकोष्ठ के प्रभार से हटाया गया, बल्कि विचाराधीन वारंट शाखा प्रभारी बनाकर विभिन्न झूठे आरोप-प्रत्यारोप लगाकर हमें प्रताड़ित किया जाता रहा है, जो आज पर्यंत जा रही है. उपरोक्त घटनाओं संबंधी सूचना महानिदेशक जेल को मेरे द्वारा प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होकर दिया गया. यही कारण है कि जेल विभाग द्वारा पूर्वाग्रह और दुर्भावना से ग्रसित होकर मुझे अस्वस्थता अवधि में ही बिना मेरा पक्ष सुने निलंबित कर दिया गया, जो कि जेल नियम, सिविल सेवा आचरण नियम 1965 एवं भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का खुला अनुसंधान है.”

वर्षा डोंगरे ने अपने पत्र में लिखा कि जेल के मेडिकल स्टॉफ और डाक्टर द्वारा प्रताड़ित किये जाने वाली महिला बंदी और कैदियों के बयान और रिपोर्ट बुक की प्रतिलिपि जब उन्होंने सूचना के अधिकार में मांगा तो उन्हें झूठी व भ्रामक जानकारी दे दी गई. वर्षा डोंगरे के अनुसार ऐसा इसलिये किया गया, ताकि उनके निलंबन के वास्तविक कारण को छिपाया जा सके. वर्षा डोंगरे ने गृहमंत्री को पीड़ित महिला बंदियों के बयान और महिला प्रकोष्ठ के प्रभार से हटाए जाने संबंधी आदेश पत्र भी गृहमंत्री को सौंपा है.

उन्होंने विस्तार पूर्वक विवरण देते हुये लिखा कि मुझे सोशल मीडिया में किये गये पोस्ट के कारण नहीं, बल्कि जेल के अंदर हो रहे अवैधानिक कृत्यों को महिला प्रकोष्ठ रिपोर्ट बुक में दर्ज करने के कारण दंडित किया जा रहा है. इस तरह जेल विभाग स्वयं समस्याओं का समाधान करने के बजाये अवैधानिक कृत्यों को ना केवल संरक्षण प्रदान कर रही है बल्कि उन्हें छिपाने के लिये हमें प्रताड़ित एवं दंडित भी कर रही है.

वर्षा डोंगरे ने निलंबन के दौरान उनका मुख्यालय अंबिकापुर किये जाने को लेकर भी गृहमंत्री का ध्यान आकृष्ट किया था. इसके अलावा उन्होंने पूरे मामले की जांच विभाग के किसी अधिकारी से किये जाने के सरकारी आदेश पर भी सवाल उठाते हुये मामले की जांच किसी दूसरे विभाग के किसी अधिकारी से कराने की मांग की गई थी. लेकिन जांच की इस मांग को ठुकरा दिया गया. अब हालत ये है कि विभाग की अपनी जांच भी साल भर में पूरी नहीं हो पाई है. 6 मई 2018 को वर्षा डोंगरे के निलंबन के एक साल पूरे हो चुके हैं और जेल विभाग निलंबन के पक्ष में कोई पुख्ता तर्क नहीं रख पाया है.

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