देश विदेश

बिहार में पानी गया पाताल

नई दिल्ली | इंडिया साइंस वायर: बिहार के कई जिलों में भूमिगत जल स्तर की स्थिति पिछले 30 सालों में चिंताजनक हो गई है. कुछ जिलों में भूजल स्तर दो से तीन मीटर तक गिर गया है.

एक ताजा अध्ययन के अनुसार, भूजल में इस गिरावट का मुख्य कारण झाड़ीदार वनस्पति क्षेत्रों एवं जल निकाय क्षेत्रों का तेजी से सिमटना है. आबादी में बढ़ोत्तरी और कृषि क्षेत्र में विस्तार के कारण भी भूजल की मांग बढ़ी है.

कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवेलपमेंट के शोधकर्ताओं द्वाराउत्तरी बिहार के 16 जिलों में किए गए इस अध्ययन के अनुसार, जल निकाय सिमटनेके कारण प्राकृतिक रूप से होने वाला भूमिगत जल रिचार्ज भी कम हुआ है.

शोधकर्ताओं के अनुसार, बेगूसराय, भागलपुर, समस्तीपुर, कटिहार और पूर्णिया जैसे जिलों के भूमिगत जल स्तर में 2-3 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है.भूजल में गिरावट से समस्तीपुर, बेगूसराय और खगड़िया सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. इन जिलों के भूजल भंडार में तीस वर्षों के दौरान क्रमशः 57.7 करोड़ घन मीटर, 39.5 करोड़ घन मीटर और 38.5 करोड़ घन मीटर गिरावट दर्ज की गई है.

मानसून से पहले और उसके बाद के महीनों में भूजल भंडार के मामले में इसी तरह का चलन समस्तीपुर, कटिहार और पूर्णिया जिलों में देखने को मिला है. मानसून से पूर्व भूजल भंडार में सबसे अधिक गिरावट 63.6 करोड़ घन मीटर और 63.1 करोड़ घन मीटर दर्ज की गई है. वहीं, मानसून के बाद भूजल भंडार में सबसे अधिक गिरावट 28.9 करोड़ घन मीटर और 21.6 करोड़ घन मीटर दर्ज की गई है.

इस अध्ययन में भूजल भंडार, भूमि उपयोग एवं भू-आवरण संबंधी तीस वर्षों के आंकड़े (1983-2013) उपयोग किए गए हैं. भूजल संबंधी आंकड़े केंद्रीय भूमि जल बोर्ड और राज्य भूमि जल बोर्ड से लिए गए हैं. वहीं, भूमि उपयोग और भू-आवरण संबंधी आंकड़े हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर से प्राप्त किए गए हैं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि इस दौरान एक ओर कृषि क्षेत्र के दायरे में 928 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोत्तरी हुई है तो दूसरी ओर जल निकायों का क्षेत्र 2029 वर्ग किलोमीटर से सिमटकर 1539 वर्ग किलोमीटर रह गया है. इसी के साथ झाड़ीदार वनस्पतियों के क्षेत्रफल में भी इस दौरान 435 वर्ग किलोमीटर की गिरावट दर्ज की गई है.

आईआईटी, कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ राजीव सिन्हा ने बताया कि “यह अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तरी बिहार को दूसरी हरित क्रांति के संभावित क्षेत्र के रूप में देखा जा रहा है. इस तरह की कोई भी पहल करते वक्त भूजल के टिकाऊ प्रबंधन से जुड़ी योजनाओं को ध्यान में रखना होगा ताकि भविष्य में गंभीर जल संकट से बचा जा सके.”

डॉ सिन्हा के मुताबिक, “हरित क्रांति के कारण पंजाब जैसे राज्यों में भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को बढ़ावा मिला है और यह क्षेत्र अब दुनिया के सर्वाधिक भूजल दोहन वाले इलाकों में शुमार किया जाता है. कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए अत्यधिक जोर देने और भूजल प्रबंधन के लिए चिंता नहीं होने के कारण वहां ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है. बिहार के उत्तरी क्षेत्र में भूजल तेजी से गिर रहा है और भविष्य में बदलती सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के साथजल के दोहन को बढ़ावा मिलने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है.”

अध्ययन में शामिल लगभग सभी जिलों में वर्ष 1990 से 2010 के बीच ट्यूबवेल से सिंचाई में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, मुज्जफरपुर, समस्तीपुर और बेगूसराय में ट्यूबवेल से सिंचाई 48 प्रतिशत से बढ़कर 75 प्रतिशत हो गई है. सुपौल, खगड़िया, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया और कटिहार में यह बदलाव सबसे अधिक देखने को मिला है और 20 वर्षों में लोग यहां सिंचाई के लिए पूरी तरह भूमिगत जल पर आश्रित हो गए हैं.

बिहार के उत्तरी इलाकों से होकर हिमालय की कई नदियां निकलती हैं और हर साल लगभग 1200 मिलीमीटर वर्षा इस क्षेत्र में होती है. यह क्षेत्र सतह पर मौजूद जल और भूमिगत जल संपदा के मामले काफी समृद्ध माना जाता है. इसके बावजूद बिहार के इस मैदानी क्षेत्र में 80 प्रतिशत सिंचाई भूमिगत जल से ही होती है, जिसके कारण भविष्य में यहां गंभीर जल संकट खड़ा हो सकता है.

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, “भविष्य में जल संकट से बचने के लिए टिकाऊ भूजल प्रबंधन योजनाओं को तत्काल विकसित किया जाना जरूरी है. इस कछारी क्षेत्र में जलभृतों की सटीक मैपिंग, भूजल संबंधी आंकड़ों का एकीकरण, कृषि एवं भूमि उपयोग प्रक्रिया में सुधार और भूमिगत जल के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए प्रभावी नियमन महत्वपूर्ण हो सकता है.” यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है. अध्ययनकर्ताओं में डॉ सिन्हा के अलावा सूर्या गुप्ता और संतोष नेपाल शामिल थे.

भूमिगत जल, जंल संकट, Groundwater level, water table

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!