राष्ट्र

आम आदमी को विश्वास मत मिलेगा ?

रायपुर | विचार डेस्क: क्या आम आदमी विश्वास मत हासिल कर पायेगा ? यह सवाल दिल्ली ही नहीं वरन् देश के आम आदमी के मन में है. दिल्ली विधानसभा में गुरुवार को अरविंद केजरीवाल के आम आदमी सरकार को विश्वास मत हासिल करना है. यह आम आदमी पार्टी के लिये उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना दिल्ली तथा देश के आम आदमी के लिये है.

आम आदमी पार्टी के रूप में दिल्ली के लोगों को कोई तो मिला है जो उसे 666 लीटर पानी रोज मुफ्त में देने के अपने घोषणा पर अडिग रहा है तथा उसे कर दिखाया है. तमाम विरोधाभासो के बावजूद अरविंद केजरीवाल नीत सरकार ने बिजली के बिल को फिलहाल तीन माह के लिये आधा कर दिया है. यह सुविधा 400 यूनिट बिजली प्रतिमाह खर्च करने वाले परिवारों के ही मिला करेगी.

आज की इस कमरतोड़ महंगाई के युग में किसी सरकार के कदम से आम आदमी को यह लगने लगा है कि कोई तो उसके दुख दर्द को समझता है. कोई तो ऐसा है जिसके मुंह मे राम बगल में छुरी नहीं है, यदि मुंह में आम आदमी है तो उसके कार्यो से भी आम आदमी को राहत मिलती है. उदारीकरण तथा निजीकरण के इस युग में आम आदमी पार्टी के रूप में दिल्ली की जनता को अपना रहनुमा मिल गया है. रहनुमा भी ऐसा है जो उन्हीं के समान मेट्रो तथा आटो की सवारी करता है. जो बीमार पड़ने पर खास नहीं, आम चिकित्सक के पास इलाज करवाने के लिये जाता है. अन्यथा बाकी के नेता तो पंच सितारा चिकित्सालयों के आईसीयू में नजर आते हैं.

पिछले करीब दस वर्षो से मनमोहन-मोंटेक की जोड़ी ने देश में जो नीतिया लागू कर रखी है वह केवल और केवल मलाईदार तबकों के लिये है.जिसके तहत अन्न विदेशों को निर्यात किया जाता है तथा कंम्प्यूटर तथा इलेक्ट्रानिक के समान का आयात किया जाता है. आम आदमी के मेहनत से बने पेंशन कोष को बाजार को भरोसे छोड़ने में उन्हें भलाई नजर आती है. आज तो सब कुछ बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है चाहे वह रसोई गैस या पेट्रोल-डीजल का मामला ही क्यों न हो.

ऐसे समय में आम आदमी की सरकार ने आम आदमी को बिजली के बिल में सब्सिडी देने का फैसला लिया है. यह वाकई एक साहसिक कदम है क्योंकि विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का फरमान तो यह है कि सब्सिडी को धीरे-धीरे विलोपित कर दिया जाये. इन्हीं कोष-बैंक का फरमान है कि सरकारी खर्च को कम करने के लिये नयी भर्तियां न की जाये. इसके बावजूद आम आदमी पार्टी ने स्थायी प्रवृति के कामों मे लगे, ठेकेदार के तहत कार्य करने वालों को सरकारी तौर पर स्थाई करने का संकल्प किया है. कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी यथास्थिति का विरोध करती हुई उससे जूझती हुई दिख रही है.

आम आदमी की सरकार की प्राथमिकता नें सड़को का जाल बिछाकर विकास का दंभ भरने का नहीं है. उसके एजेंडे में तो दिल्लीवासियों को पानी मुहैय्या करवाने के लिये पाईप लाइने बिछाने का सपना है.यह आम आदमी की पार्टी रेलगाड़ियों तथा बसो में लादकर लोगों को अपने सभा में नहीं लाती है. इसके शपथ ग्रहण समारोह में भीड़ स्वत: स्फूर्त ढ़ंग से पहुंच जाती है. ऐसे आम आदमी पार्टी को जब विशवास मत हासिल करना हो तो यहीं कहा जा सकता है कि गुरुवार को आम आदमी विश्वास मत हासिल कर पायेगा कि नहीं.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पास 90 सदस्यों वाली विधानसभा में 28 सीटें हैं जिसे समर्थन देने का 8 सदस्यों वाली कांग्रेस ने उप राज्यपाल को भरोसा दिया है. ऐसे में किसी को शक नहीं होना चाहिये कि आम आदमी पार्टी को विश्वास मत मिल ही जायेगा.यह सवाल उठाया है आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने कि उनके पास 48 घंटे का समय है क्योंकि वह जानते हैं कि उन्होंने नैगम घरानों के मुनाफे पर चोट की है, उन्होंने उदारीकरण के इस युग में विश्व बैंक-अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आदेशो के विपरीत जाने का साहस किया है. नैगम घरानों को कभी यह मंजूर नहीं होगा कि उनके निजी अकाऊंट का ऑडिट करवाया जाये.

ऐसा लगता है कि देश में बने माहौल को देखते हुए कांग्रेस अपने वादे से पीछे नहीं हटेगी क्योंकि उस पर स्वयं जनता का विश्वास का हासिल करने का काम बकाया है. 2014 में सत्तासीन होने का ख्वाब देखने वाली भाजपा भी इतना बड़ा कदम उठाने के मूड में नहीं है कि आम आदमी पार्टी को गिराकर लोकसभा का चुनाव मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल बना दिया जाये. ज़ाहिर है, आम आदमी पार्टी को लेकर एक आश्वस्ति तो नज़र आती है कि उसे दोनों पार्टियां फिलहाल गिराने का खतरा मोल नहीं लेंगी लेकिन राजनीति का क्या भरोसा ?

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