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अजीत जोगी का आदिवासी जाति प्रमाण पत्र रद्द

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का आदिवासी होने का जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया है.सरकार के इस क़दम को अजीत जोगी और उनके परिवार की राजनीतिक दौड़ पर लगाम की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह इस बारे में पहले ही साफ कर चुके हैं कि जोगी के आदिवासी होने की जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर की गई है और इसमें राजनीतिक अर्थ नहीं तलाशा जाना चाहिये.

दूसरी ओर अजीत जोगी ने कहा है कि इस निर्णय से उन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि इससे पहले छह-छह बार उनका जाति प्रमाण पत्र रद्द किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि वे इस पूरे मामले को अदालत में ले जायेंगे. उन्होंने कहा कि विपक्षी दल कांग्रेस और रमन सिंह की भाजपा सरकार मिलजुल कर राजनीतिक षड्यंत्र कर रहे हैं. लेकिन जनता इस बात को बेहतर समझती है.

सोमवार को बिलासपुर ज़िला प्रशासन ने अजीत जोगी के जाति प्रमाण पत्र को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट के बाद ज़िला प्रशासन ने यह निर्णय लिया है.

इधर अजीत जोगी के बेटे और मरवाही के विधायक अमित जोगी ने कहा कि जाति प्रमाण पत्र निरस्त किए जाने का निर्देश जारी होने पर उन्हें जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ. ये तो अपेक्षाकृत था. उन्होंने कहा कि राज्य की छानबीन समिति, सुप्रीम कोर्ट की हाई पावर कमेटी नहीं है,बल्कि वो सीएम पॉवर कमेटी है, इसलिए मुख्यमंत्री के मनमुताबिक और दिशा निर्देश पर काम हो रहा है.

अमित जोगी ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बीच पैर-पायल का रिश्ता है, जब पैर हिलता है, तभी पायल खनकती है. सब कुछ सुनियोजित है. दोनों पार्टियों का अहंकार उस दिन टूटेगा, जब भाजपा की सत्ता जाएगी और कांग्रेस को अपने ही पदाधिकारियों का वोट नहीं मिलेगा.

अमित जोगी ने कहा कि जाति का मुद्दा एक राजनीतिक गुब्बारा है, जिसकी हवा न्यायालय में निकल जाएगी. इसके पहले भी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर हमे न्याय दिया था.जो हश्र पिछली रिपोर्टों का हुआ वही हाल इस रिपोर्ट का होगा.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति के मामले में ऊपरी अदालत ने उच्च स्तरीय स्टैंडिंग कमेटी को छह महीने के अंदर जाँच कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था. इसके बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यतींद्र सिंह और प्रितिंकर दिवाकर की पीठ ने भाजपा नेता बनवारी लाल अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए जोगी की जाति से संबंधित अब तक के सभी रिकार्ड दो दिन के भीतर पेश करने के आदेश दिये थे.

उल्लेखनीय है कि पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष बनवारी लाल अग्रवाल ने 11 जुलाई, 2002 को अजीत जोगी के विरुद्ध फर्जी जाति प्रमाण पत्र लेने का आरोप लगाते हुये जनहित याचिका दायर की थी. उस समय इस मामले में तत्कालीन न्यायमूर्ति पी.सी. नायक और न्यायमूर्ति फखरूद्दीन की अदालत ने अपने आदेश में इसकी सुनवाई से बिना कोई कारण बताए इनकार कर दिया था.

लगभग 10 साल बाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनील कुमार सिन्हा ने पूर्व में अजीत जोगी का वकील होने का हवाला देते हुये अजीत जोगी के जाति प्रमाण पत्र की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.

इससे पहले 13 अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को आदेश दिया था कि वह अजीत जोगी की जाति के पूरे मामले की हाई पावर कमेटी से जांच कराये. अदालत ने कहा था कि अजीत जोगी की जाति पर निर्णय राज्य-स्तरीय छानबीन समिति सर्वोच्च न्यायालय द्वारा माधुरी पाटिल प्रकरण में निर्धारित विधि के अनुसार करेगी और अपनी रिपोर्ट 3 महीने के अन्दर उसे सौपेगी. इसके बाद अजीत जोगी ने अदालत के इस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी. मामला अदालत की कार्रवाइयों में उलझा रहा.

इस बीच पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने अजीत जोगी के जाति संबंधी दावे खारिज कर दिया. रीना बाबा साहेब कंगाले की कमेटी ने जोगी के आदिवासी होने संबंधी दस्तावेज़ों को उचित और पर्याप्त नहीं माना.

इसी रिपोर्ट को आधार बना कर बिलासपुर ज़िला प्रशासन ने अजीत जोगी के आदिवासी होने संबंधी प्रमाण पत्र को खारिज कर दिया.

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