प्रसंगवश

क्यों न चुनाव भी Cashless हो ?

मोदी जी ने आज कैशलेस सोसाइटी बनाने का आव्हान् किया है. प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस रविवार को अपनी ‘मन की बात’ में भारत को एक कैशलेश समाज में परिवर्तित करने पर जोर दिया है. नोटबंदी के बाद जिस तरह से समाज का हर वर्ग आगे बढ़कर इसका समर्थन कर रहा है उससे यही जाहिर होता है कि भारतीय समाज कैशलेस हो सकता है. मोदी जी ने अपने ‘मन की बात’ में देश के विभिन्न हिस्सों का उदाहरण देकर बताया है कि किस तरह से देशवासी भीषण कष्ट उठाकर काले धन के खिलाफ उठाये गये इस कदम का समर्थन कर रहें हैं, नई राह निकाल रहें है. कहते हैं कि जहां चाह, वहां राह. इस कहावत को मोदी जी ने हकीकत में बदलकर दिखाया है. उन्होंने ‘भारतीय जनता की मन की बात’ को बखूबी समझ लिया है कि जनता हर हाल में भ्रष्ट्राचार से मुक्ति चाहती है.

पढ़ें- 27 नवंबर, 2016 को आकाशवाणी पर प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम का मूल पाठ

क्यों न लगे हाथ इस मौके का फायदा उठाकर देश की राजनीति को भी भ्रष्ट्राचार से मुक्त करा दिया जाये. जिसके लिये अन्ना हजारे द्वारा की गई कोशिश परवान न चढ़ सकी थी परन्तु हो सकता है वहां मोदी जी का कैशलेस वाला फंडा सफल हो जाये. आखिर जो काम पिछले 70 सालों में नहीं हुआ है वह आगे भी नहीं होगा, इसे मान कर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से काम नहीं चलेगा.

गौरतलब है कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय दलों द्वारा पिछले 2009 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 49.43 फीसदी ज्यादा खर्च किये गये थे.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में 75 दिनों की चुनावी अवधि के दौरान भाजपा ने सबसे ज्यादा 715.48 करोड़ रुपये खर्च किये थे. भाजपा के बाद कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 486.21 करोड़ खर्च किये थे. इसके बाद एनसीपी ने 64.48 करोड़ और बीएसपी ने 30.06 करोड़ खर्च किये थे.

यह दिगर बात है कि कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 10 हजार करोड़ रुपये खर्च किये थे. इन आरोप प्रत्यारोपों पर भी तभी लगाम लगाई जा सकती है चुनाव के सभी खर्च कैशलेस तरीके से होने लगे.

दुष्यंत कुमार ने कहा था कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों. अब जब समाज कैशलेस बनने जा रहा है जहां हर खर्च बिना नकदी के हो सकता है तो क्यों न इसे सभी तरह के चुनावों पर भी इसे लागू कर दिया जाये. जिसमें लोकसभा, विधानसभा, नगर निगम, नगर पालिका, पंचायत सभी तरह के चुनावों में कैश खर्च करने पर पाबंदी लगा दी जानी चाहिये.

कहने का तात्पर्य यह है कि चुनाव के समय निर्वाचन आयोग को सूचना दे दी जाये कि उम्मीदवार, राज्य पार्टी तथा पार्टी के अखिल भारतीय केन्द्र के पास कितने रुपये हैं. उसके बाद हर खर्च या तो पेटीएम से या मनी ट्रांसफर से या मोबाईल एप से या ई-वॉलेट से या चेक से किया जाये.

जिसकी शुरुआत ही चुनाव के लिये भरी जाने वाली जमानत के कैशलेस से होनी चाहिये. जिला चुनाव अधिकारी के कार्यालय में स्वाइप की मशीनें अनिवार्य कर देनी चाहिये जिससे कोई भी कैश पैसे से अपनी जमानत न भर सके.

इसके बाद पोस्टर छपवाने का खर्च, गाड़ियों का खर्च, पेट्रोल-डीजल का खर्च, रहने खाने का खर्च, कार्यकर्ताओं को दिया जाने वाला हाथ खर्च, माईक का खर्च, टेंट हाउस का खर्च सब कुछ डिजीटल माध्यम से किया जाये. सरकार को हर एक ऐसी दुकान में स्वाइप मशीन अनिवार्य कर देनी चाहिये जो चुनाव सामग्री बनाते या बेचते हैं.

|| इतना ही नहीं राजनीतिक दलों द्वारा लिये जाने वाले चंदे को भी कैशलेस होना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये जिससे पारदर्शिता बनी रहेगी. ||

इससे जिस तरह से नोटबंदी करके आतंकवादियों के काले धन पर चोट की गई है उसी तरह से भारतीय चुनावों को भी भ्रष्ट्राचार मुक्त किया जा सकता है. चुनाव के समय पुलिस तथा प्रशासन ठीक उसी तरह से सभी कैशों का हिसाब मांगने लगे जैसे अभी मांगा जा रहा है.

जिस तरह से भारत ने नोटबंदी करके दुनिया के सामने एक मिसाल कायम की है उसी तरह से कैशलेस चुनाव करके भारत दुनिया को एक और नई सीख दे सकता है.

भारतीय समाज को कैशलेस करने के पक्ष में मोदी जी ने जो आकड़ा पेश किया है उससे तो यही जाहिर होता है कि एक बार ठान ली जाये कि देश के हर चुनाव प्रक्रिया को कैशलेस किया जायेगा तो यह मुश्किल काम नहीं होगा.

जब तक राजनीति को कैशलेस नहीं किया जाता तब तक समाज कैसे कैशलेस हो सकता है.

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