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शिक्षा का अधिकार है तो मिलता क्यों नहीं ?

जम्मू | रेयाज मलिक: लड़कियों की शिक्षा भारत सरकार के साथ जम्मू-कश्मीर सरकारकी भी उच्च प्राथमिकता रही है. 6 से 14 साल की उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए जम्मू कश्मीरप्रतिबद्ध है. भारत में हर बच्चे को यह मौलिक अधिकार दिसंबर, 2002 में संविधान का86वां संशोधन अधिनियम पास होने के बाद मिला है.

उपर्युक्त वाक्य मेरा नहीं है बल्कि राज्य सरकार के शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर स्पष्ट शब्दों में लिखा है. इतना ही नहीं बल्कि राज्य का शिक्षा विभाग चित्र द्वारा बताता है कि ” बच्चे से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर प्राथमिक स्कूल, तीन किलोमीटर की दूरी पर मध्य विद्धालय,पांच किलोमीटर की दूरी पर हाई स्कूल और सात किलोमीटर की दूरी पर उच्च माध्यमिक स्कूल होना चाहिए.”

मालूम हो कि जम्मू का सीमावर्ती जिला पुंछ 1674 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसकी जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 476820 है. जिसमें गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने वालों की संख्या 138404 है. इस जिले में 179 पहाड़ी गांव हैं. यहां प्राथमिक स्कूलों की कुल संख्या 578 है जबकि मध्य विद्धालय की संख्या 304 है.

हाई स्कूलों की संख्या 45 और साक्षरता दर 68.69 है. इन आंकड़ोंको राज्य सरकार का शिक्षा विभाग वेबसाइट द्वारा दुनिया तक पहुंचा रहा है. लेकिन धरातल स्थिति की समीक्षा करना भी जरूरी है क्योंकि बच्चे वेबसाइटों औरदफ़्तरी कागजों पर पढ़ाई नहीं करते हैं बल्कि उनकी शिक्षा खुले आसमान के नीचे बिना छत वाले स्कूल में आज भी जारी है. जहां शिक्षक कभी आते हैं कभी किराए के शिक्षक भेजकर अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं.

जिला पुंछ की मंडी तहसील कॉम्पलेक्स से पूर्व की ओर सिर उठाकर देखेंगे तो 90 डिग्री की ऊंचाई के साथ पहाड़ की चोटी पर एक गांव दिखेगा. यहाँ एक प्राथमिक और मध्य विद्धालय है. यह मोहल्लागांवअड़ाई की पीरां पंचायत के साथ जुड़ा है. इसके एक ओर मंडी राज पूरा और दूसरी ओर मंडी बाईला पंचायत है.

यहां के 38 वर्षीयस्थानीय निवासी मंज़ूर अहमद तानतरे कहते हैं- “अड़ाई गांव का लोअर मोरी, अपर मोरी, करीमा, वज़ीरा, टांडह, डोबह अपर, डोबह लोअर आदि मोहल्ले की आबादी लगभग 900 है जबकि दो सौ से अधिक परिवार हैं. इन सभी के लिए सरकार की ओर से एक मध्य और प्राथमिक स्कूल हैं.

मोरी अड़ाई के सरकारी स्कूल के शिक्षक कहते हैं कि “स्कूल में कुल चार कमरे हैं, जिनमें एक कार्यालय, एक स्टोर रूम है. केवल दो कमरों में आठ कक्षाओं के 170 बच्चों को पढ़ना तो दूर की बात है. उनका बैठना भी मुश्किल हो जाता है.वह कहते हैं कि दो साल पहले यहां स्कूल के दो कमरे का निर्माण होना था. लेकिन न जाने क्यों वह अब भी अधूरे पड़े हैं. बच्चे खुले आसमान तले बैठने को मजबूर हैं.”

मुहम्मद अकरम ने बताया कि “आसमान की छत और जमीन के फर्श के सहारे मासुम बच्चे शिक्षा का दीपक रोशन कर रहे हैं.बच्चों पर जमीन वालों को तो दया नही आयी लेकिन उपर वाला बहुत दयालु रहा कि इस साल अब तक बारिश को रोके रखा है. कड़कती धूप में दीवारों की छांव के सहारे बच्चें पढ़ लेते हैं लेकिन बारिश में छुट्टी के सिवा दूसरा चारा नहीं होता.”

स्कूल के एक अन्य शिक्षक मुहम्मद अकरम से बात करने पर पता चला कि यहां बच्चों के साथ शिक्षकों को भी परेशान होना पड़ रहा है. एक ओर छात्रों की संख्या में वृद्धि हो रही है तो दूसरी ओर जगह की कमी ने शिक्षा को प्रभावित किया है. धूप में बिना छत के कमरे में और बारिश में छुट्टी के अलावा कोई रास्ता नही रहता.

साठ वर्षीय मोहम्मद अब्दुल्लाह ने कहा“सरकार मोरी की जनता के साथ अन्याय कर रही है. सरकार और शिक्षा विभाग के जिम्मेदार मूकदर्शक बने हुए हैं.दो साल के बाद भी स्कूल के दो कमरे का निर्माण नही हो पाया. बिना किसी मुआवजे के स्थान को भी बर्बाद कर दिया जाता है और लक्ष्य भी पूरा नहीं होता. निर्माण की गयी दीवारों की स्थिति ऐसी हो गई है कि अगर उन पर स्लैब डाला गया तो दीवारें गिर जाएंगीं. वह सरकार और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से सवाल करते हुए कहते हैं कि बच्चों के भविष्य को अंधकारमय बनाना क्या आपकीजिम्मेदारी है? अगर निर्माण के लिए फंड में पैसा नहीं होतातो पुनर्निर्माण का काम क्यों लगाते हैं?क्या मोरी के लोगों को लोकतांत्रिक होने का यही सिला दिया जा रहा है?एक तरफ स्मार्ट क्लासेज़ की बातें हो रही हैं और दूसरी ओर हमारे बच्चों को सिर छिपाने की भी व्यवस्था नहीं है.”

समाजसेवी शब्बीर अहमद कहते हैं ” हमें गांव में बसने की सरे आम सजा दी जा रही है. जिससे यह साबित हो रहा है कि शिक्षा भी केवल अमीर लोगों की जागीर बन चुकी है.गरीबों के बच्चे अमीरों की नौकरी के लिए ही इस्तेमाल किए जाते हैं और आगे भी किए जाते रहेंगे. नेता चुनाव के दौरान उच्च अधिकारियों के सामने इन गरीबों को ख्वाब दिखा कर उनका शोषण करते हैं. जिससे साफ जाहिर होता है कि हम लोकतांत्रिक भारत में नहीं रहते . आज के विकसित दौर में भी मोरी अड़ाई के बच्चे खुले आसमान तले शिक्षा लेने को मजबूर हैं.मिडिल स्कूलकी अधूरी बिल्डिंग के निर्माण को पूरा होना चाहिए ताकि कम से कम धूप और बारिश में भी उनकी पढ़ाई जारी रह सके.”

आठवीं कक्षा की साएमा कौसर और सातवीं कक्षा की आयशा सिद्दीक़ा शुरु से लेकर आज तक इसी खस्ताहाल स्कूल की जमीन पर शिक्षा प्राप्त कर रही हैं.वह उदास चेहरे के साथ कहती हैं कि “सरकार और शिक्षा विभाग हमारे लोकतांत्रिक अधिकार हमें दें. हमें भी शहरों जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराए, क्योंकि हम सरकार या स्कूल प्रशासन से भीख नहीं मांग रहे हैं, बस अपना अधिकार मांग रहे हैं.शिक्षा केन्द्रों कोबेहतर बनाना सरकार की जिम्मेदारी है.”

कहानी का दूसरा रुख जानने के लिए जब पीडब्ल्यूडी के सहायक इंजिनियर से बात की गई तो उन्होंने जिला पुंछ के डी–एम के सामने इस बात को स्वीकार किया कि भवन निर्माण के लिए राशि जिला योजना से खर्च किया गया. लेकिन राशि कम पड़ जाने के कारण स्कूल में स्लैब नही पड़ सकता है.जिसके जवाब में डी–एम ने जल्द इस को पूरा करने का निर्देश दिया है, जिसके बाद बड़ी धीमी गति के साथ ही सही स्कूल का निर्माणशुरु हो गया था लेकिन फिर कुछ दिनों बाद ही काम बंद हो गया.

इस कारण जनता में निराशा हैं स्थानीय लोगो के अनुसार इससे पहले भी कई बार वादे हुए लेकिन आज तक पूरा नही हो सका. जरूरत इस बात की है कि अब पहली फुरसत में स्कूल पर छत डाल करहमारे भविष्य को रोशन करने में शिक्षा विभाग और राज्य सरकार मदद करें.

स्पष्ट है सरकार से लोगो की उम्मीदें अब भी कम नही हुई हैं. अब देखना यह है कि हमारे प्रतिनिधि शिक्षा के अधिकार को वबसाइटों से उतारकर धरातल स्तर पर कब लाते हैं ताकि आने वाले समय मे सरहदी बच्चों को स्कूल की छत के नीचे शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हो.

चरखा फीचर्स

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