छत्तीसगढ़ विशेषताज़ा खबर

छत्तीसगढ़ में कैद में है नदी

रायपुर | संवाददाता: नदियों को मनुष्य की तरह बताने के फैसलों के बीच छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी अपनी मुक्ति के लिये छटपटा रही है.

एक सप्ताह के भीतर नदी को मुक्त कराने के विधानसभा की लोकलेखा समिति की अनुशंसा को दस साल गुजर गये हैं लेकिन राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार उस फाइल पर कुंडली मार कर बैठी हुई है.छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी को यूं तो कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के जमाने में एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया था लेकिन तब सरकार का विरोध करने वाली राज्य की भाजपा सरकार के मुखिया रमन सिंह इस पर चुप्पी साधे हुये हैं.

छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी को गिरवी रखे जाने की फाईल छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्रिमंडल में कैद है. विधानसभा की लोक लेखा समिति ने जो अनुशंसाएं की थी, उस पर विधि मंत्री और जल संसाधन मंत्री फाइल-फाइल खेलते रहे. दावा ये किया जा रहा है कि मंत्रिमंडल के निर्देशानुसार अग्रिम कार्रवाई की गई है लेकिन यह कार्रवाई क्या है, यह बताने की हालत में कोई नहीं है.

गौरतलब है शिवनाथ नदी के 23 किलोमीटर हिस्से को रेडियस वाटर नामक निजी कंपनी को 22 सालों के लिये गिरवी रखने का समझौता तत्कालीन मध्यप्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम, रायपुर के प्रबंध संचालक गणेश शंकर मिश्रा ने 5 अक्टूबर 1998 को किया था. देश और दुनिया भर में नदी को बेचे जाने को लेकर हंगामा हुआ. भाजपा ने भी तत्कालीन दिग्विजय सिंह और बाद में अजीत जोगी की सरकार के खिलाफ खूब हंगामा किया. इसके बाद सरकार ने मामले की जांच विधानसभा की लोक लेखा समिति से करवाने की घोषणा की. रमन सिंह की सरकार में लोक लेखा समिति ने 16 मार्च 2007 को जब विधानसभा में जांच रिपोर्ट भी पेश कर दी लेकिन पिछले 10 सालों से लोकलेखा समिति की अनुशंसा को जाने किस दबाव और प्रलोभन में आज तक दबा कर रखा गया है.

16 मार्च 2007 को लोकलेखा समिति ने तीन प्रमुख अनुशंसाएं की थीं- रेडियस वॉटर लिमिटेड के साथ मध्य प्रदेश औद्योगिक केन्द्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक केन्द्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर) के मध्य निष्पादित अनुबंध एवं लीज डीड को, प्रतिवेदन सभा में प्रस्तुत करने के एक सप्ताह की अवधि में, निरस्त करते हुए समस्त परिसम्पत्तियों एवं जल प्रदाय योजना का अधिपत्य छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम द्वारा वापस ले लिया जाए.

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि- “जल प्रदाय योजना की परिसम्पत्तियां निजी कंपनी को लीज़ पर मात्र एक रुपये के टोकन मूल्य पर सौंपा जाना तो समिति के मत में ऐसा सोचा समझा शासन को सउद्देश्य अलाभकारी स्थिति में ढकेलने का कुटिलतापूर्वक किया गया षड़यंत्र है, जिसका अन्य कोई उदाहरण प्रजातांत्रिक व्यवस्था में मिलना दुर्लभ ही होगा….दस्तावेजों से एक के बाद एक षडयंत्रपूर्वक किए गए आपराधिक कृत्य समिति के ध्यान में आये, जिसके पूर्वोदाहरण संभवतः केवल आपराधिक जगत में ही मिल सकते हैं. प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कोई शासकीय अधिकारी उद्योगपति के साथ इस प्रकार के षड़यंत्रों की रचना कर सकता है, यह समिती की कल्पना से बाहर की बात है.”

लोक लेखा समिति सिफारिश की थी कि रेडियस वाटर लिमिटेड के साथ मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम लिमिटेड रायपुर (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम) के तत्कालीन प्रबंध संचालक गणेश शंकर मिश्रा द्वारा किये गये अनुबंध एवं लीज़-डीड को प्रतिवेदन सभा में प्रस्तुत करने के एक सप्ताह की अवधि में निरस्त करते हुए समस्त परिसम्पत्तियां एवं जल प्रदाय योजना का आधिपत्य छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकाल निगम द्वारा वापस ले लिया जाए.

सिफारिश में कहा गया था कि मध्य प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड एवं मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर के तत्कालीन प्रबंध संचालकों एवं मध्य प्रदेश राज्य औद्योगिक निगम लिमिटेड के मुख्य अभियंता के विरुद्ध षड़यंत्रपूर्वक शासन को हानि पहुँचाने, शासकीय सम्पत्तियों को अविधिमान्य रूप से दस्तावेजों की कूटरचना करते हुए एवं हेराफेरी करके निजी संस्था को सौंपे जाने के आरोप में प्रथम सूचना प्रतिवेदन कर उनके विरुद्ध अभियोजन की कार्यवाही संस्थापित की जाए और इस आपराधिक षडयंत्र में सहयोग करने और छलपूर्वक शासन को क्षति पहुँचाते हुए लाभ प्राप्त करने के आधार पर रेडियस वॉटर लिमिटेड के मुख्य पदाधिकारी के विरुद्ध भी अपराध दर्ज कराया जाए.

सिफारिश में कहा गया था कि मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम लिमिटेड, रायपुर एवं जल संसाधन विभाग के तत्कालीन अधिकारी जिनकी संलिप्तता इस सम्पूर्ण षडयंत्र में परिलक्षित हो, इस संबंध में भी विवेचना कर उनके विरुद्ध भी कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही एक माह की अवधि में आरंभ की जाए.

लोक लेख समिति ने यह भी कहा कि समिति द्वारा अनुशंसित सम्पूर्ण कार्यवाही सम्पादित करने की जिम्मेदारी सचिव स्तर के अधिकारी को सौंपते हुए शासन का हित रक्षण करने के लिए उत्कृष्ट विधिक सेवा प्राप्त करते हुए आवश्यकतानुसार न्यायालयीन प्रकियाओं में विधिक प्रतिरक्षण हेतु भी प्रयाप्त एवं समुचित कार्यवाही सुनिश्चित की जाए ताकि विधिक प्रतिरक्षण के अभाव में अथवा कमज़ोर विधिक प्रतिरक्षण के कारण शासन को अनावश्यक रूप से अलाभकारी स्थिति में न रहना पड़े.

लेकिन कांग्रेस सरकार में शिवनाथ नदी को गिरवी रखे जाने के मुद्दे पर हाय-तौबा मचाने वाली भाजपा जब सरकार में आई तो उसने एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई करने की विधानसभा की लोकलेखा समिति की रिपोर्ट का क्या किया, जरा इसे भी देखें और फाइलों की रफ्तार तो देखने लायक है ही.

दस्तावेज बताते हैं कि 16 मार्च 2007 को विधानसभा में पेश की गयी लोक लेखा समिति की रिपोर्ट 21 मार्च 2007 को प्राप्त होती है और इसे विधि विभाग के माध्यम से 4 महीने बाद 19 जुलाई 2007 को महाधिवक्ता, उच्च न्यायालय की राय के लिये भेजा गया. उच्च न्यायालय के महाधिवक्ता को इस फाइल पर अपनी राय देने में 7 महीने लगे और सरकार को 11 फरवरी 2008 को उनकी राय मिल गई.

इसके महीने भर बाद 6 मार्च 2008 को इस मामले को मंत्रिमंडल में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया गया. लेकिन उससे पहले वित्त और विधि विभाग की राय प्राप्त करते हुये इसे मंत्रिमंडल में पेश करने का प्रशासकीय अनुमोदन प्राप्त करने में लगभग 2 साल लग गये और 4 जनवरी को 2010 को मंत्रिमंडल की बैठक में यह मामला विचार के लिये लाया गया.

महाधिवक्ता, वित्त और विधि की राय के बाद मंत्रिमंडल में पेश किये गये इस मामले में मंत्रिमंडल का निर्णय गौरतलब है. मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया कि प्रमुख सचिव वित्त एवं योजना, प्रमुख सचिव विधि और विधायी कार्य विभाग तथा सचिव वाणिज्य एवं उद्योग विभाग द्वारा प्रकरण का विस्तृत परीक्षण कर माननीय मंत्रीजी, जल संसाधन, उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा विभाग के माध्यम से माननीय मुख्यमंत्री जी का अनुमोदन प्राप्त कर कार्यवाही की जाये.

फिर 5 महीने बाद 18 मई 2010 को सचिव स्तरीय समिति का गठन किया गया. 8 महीने बाद 25 जनवरी 2011 को सचिव स्तरीय समिति का प्रतिवेदन प्राप्त हुआ. इस बात को 2 साल से अधिक समय गुजर चुके हैं. सरकार का दावा है कि सचिव स्तरीय समिति का प्रतिवेदन मिलने के बाद अग्रिम कार्रवाई की जा रही है लेकिन यह कार्रवाई क्या है, इसे बताने वाला कोई नहीं है.

One thought on “छत्तीसगढ़ में कैद में है नदी

  • Dr.ASRAS Sastri

    It is good that latest new about chhattisgarh is available. Very good attempt

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!