ताज़ा खबर

आदिवासी मामलों में नहीं हो पाती सज़ा

रायपुर | संवाददाता: आदिवासी समाज के खिलाफ होने वाले अपराध में छत्तीसगढ़ में सज़ा नहीं हो पाती. पिछले कुछ सालों में सज़ा का यह प्रतिशत और घटता चला गया है. वर्षवार आंकड़े बताते हैं कि हालात बहुत अच्छे नहीं हैं. दूसरी ओर केंद्र सरकार का कहना है कि यह राज्य का मामला है और राज्यों पहले से ही केंद्र ने इन मामलों को लेकर परामर्शी पत्र जारी किया है.

गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर के अनुसार-भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ राज्य के विषय है. कानून और व्यवस्था को बनाए रखने और नागरिकों के जान-माल की रक्षा करने का दायित्व मुख्य रूप से संबंधित राज्य सरकारों का है. राज्य सरकारें विधि के वर्तमान उपबंधों के तहत ऐसे अपराधों से निपटने में सक्षम है. गृह मंत्रालय ने अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के प्रति अपराधों से निपटने के लिए परामर्शी-पत्र जारी किए हैं.

आंकड़ों की मानें तो 2014 तक केवल 27 प्रतिशत मामले ही ऐसे थे, जिनमें किसी को सज़ा हो पाई. एससी एसटी अत्याचारों का निवारण अधिनियम के तहत आदिवासी समाज के लोगों के खिलाफ होने वाले अपराध में दोष सिद्धी की यह दर पड़ोसी राज्यों से बेहद कम है.

आंकड़ों की मानें तो 2014 में एससी एसटी अत्याचारों का निवारण अधिनियम के तहत आदिवासी मामलों में कुल 475 मामले दर्ज़ किये गये थे. इसमें से केवल 69 मामलों में ही दोष सिद्ध हुये, जो कुल दर्ज़ मामलों का केवल 27.3 प्रतिशत है. कुल विचारपूर्ण मामले 253 थे.

इसी तरह 2015 के आंकड़े देखें तो उपरोक्त अधिनियम के तहत आदिवासी मामलों में 373 मामले दर्ज़ किये गये, जिसमें से 120 मामलों में दोषसिद्ध हुआ.

2016 के आंकड़े भी बहुत अच्छे नहीं हैं. 2016 में जहां कुल 402 मामले दर्ज़ किये गये, जिनमें दोषसिद्ध मामले 78 थे.

इस दौरान पड़ोसी राज्यों का हाल देखें तो पता चलता है कि 2016 में झारखंड में दोषसिद्धी दर 48.6 प्रतिशत थी. इसी तरह उत्तरप्रदेश में यह आंकड़ा 70.6 प्रतिशत था. बिहार में भी यह आंकड़ा 45.5 प्रतिशत था. अरुणाचल प्रदेश में 2014 से 2016 के बीच कुल जमा एक मामला दर्ज किया गया और उसमें भी आरोपियों को सज़ा हो गई.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!