छत्तीसगढ़

PSC 2003: हाईकोर्ट के फैसले पर रोक

नई दिल्ली | संवाददाता: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ पीएससी 2003 पर हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है. पद्मिनी भोई तथा चंदन संजय त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी अफसर के डिमोशन पर अगले आदेश तक कार्यवाही करने पर रोक लगा दी है. पीएससी हाईकोर्ट के लिये काम करेगी वह नहीं रुकेगा. हाईकोर्ट ने 31 अक्टूबर तक नई स्केलिंग सूची मांगी थी.

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अगस्त माह के आखिरी सप्ताह में छत्तीसगढ़ पीएससी के 2003 की परीक्षा की फिर से मेरिट लिस्ट बनाने के आदेश दिये थे. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की एकल पीठ ने इस ऐतिहासिक फैसले में सरकार को कहा था कि वह मानव विज्ञान का यार्ड स्टिक आधार पर नये सिरे से उत्तर पुस्तिका की जांच करे. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जो नये मेरिट लिस्ट के आधार पर चयनित नहीं होंगे उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया जायेगा.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया के लिये 31 अक्टूबर तक की समय सीमा निर्धारित की थी. इस ऐतिहासिक फैसले के बाद राज्य में पिछले 13 सालों से नौकरी कर रहे कई डिप्टी कलेक्टर और पुलिस उपाधीक्षक नौकरी से बाहर हो सकते थे या उन्हें निचले स्तर के किसी पद पर पदावनत किया जा सकता था. ऐसे लोगों की संख्या 73 के आसपास है.

2003 में हुई पीएससी की परीक्षा को लेकर वर्षा डोंगरे ने एक याचिका छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर की थी कि परीक्षा में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है. इस मामले में रविंद्र सिंह और चमन सिन्हा ने भी याचिका दायर की थी. इस मामले में शुरुआती बहसों के बाद याचिकाकर्ताओं ने खुद ही इस मामले में बहस और पैरवी की थी. कई सालों तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुनाते हुये वर्षा डोंगरे को 5 लाख रुपये और शेष दो याचिकाकर्ताओं को 2-2 लाख रुपये की मुआवजा राशि भी देने के भी आदेश दिये थे.

छत्तीसगढ़ में पीएससी भ्रष्टाचार का गढ़ बना रहा है. मनमाने तरीके से सवाल और कापियों में गड़बडी के मामले लगातार उजागर होते रहे हैं. आयोग के सदस्य और अध्यक्ष तक पैसे की बात करते कैमरों में कैद हुये हैं लेकिन राज्य सरकार ने कभी कोई कार्रवाई नहीं की. हालत ये हुई है कि राज्य सरकार ने तमाम तरह की गड़बड़ी करने वालों को हमेशा बचाने की ही कोशिश की है.

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