बाज़ार

शुक्रवार को बैंकों की हड़ताल

चेन्नई | समाचार डेस्क: एकीकरण तथा निजीकरण के खिलाफ़ शुक्रवार को निजी और सरकारी बैंकों की हड़ताल रहेगी. केंद्र सरकार की बैंकिंग क्षेत्र की नीतियों के विरोध में देशभर के निजी और राष्ट्रीयकृत बैंकों के लगभग 10 लाख कर्मचारियों की एकदिवसीय हड़ताल के मद्देनजर शुक्रवार को बैंकों में कामकाज बंद हैं. अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव सी.एच.वेंकटचालम ने चेन्नई में कहा, “इस हड़ताल को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है, क्योंकि इससे देशभर के लगभग 10 लाख कर्मचारी जुड़ गए हैं. अधिकांश राष्ट्रीयकृत बैंक बंद हैं.”

आंध्र बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव के.पामाराईसेल्वन ने कहा, “देशभर में बैंकिंग कामकाज प्रभावित हुआ है.”

इस महीने की शुरुआत में प्रमुख बैंक यूनियनों ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अपनी 12 और 13 जुलाई को प्रस्तावित हड़ताल टाल दी थी.

बैंकिंग सेक्टर की यूनियनें पांच सरकारी बैंकों के भारतीय स्टेट बैंक में एकीकरण और आईडीबीआई बैंक के निजीकरण के खिलाफ हड़ताल कर रही हैं.

बैंक यूनियन सरकार स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद के एसबीआई में एकीकरण के खिलाफ हैं.

उन्होंने कहा, “इस हड़ताल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, पुरानी पीढ़ी के निजी बैंक और विदेशी बैंकों के करीब 80,000 शाखाओं के अधिकारी और कर्मचारी शामिल रहेंगे.”

उनके मुताबिक, बैंक देश में करीब 2 लाख एटीएम मशीनों में कैश डालने के बाद हड़ताल पर जाएंगे, ताकि लोगों को नगदी निकालने की सुविधा मिलती रहे.

उन्होंने कहा, “हम तब हड़ताल करना चाहते हैं जब संसद सत्र चल रही हो. इसलिए शुक्रवार को हड़ताल की जा रही है. उसके अगले दिन एक पूर्ण कामकाजी दिन है. इसलिए छुट्टियों के साथ हड़ताल करने का आरोप सही नहीं है.”

वेंकटाचलम ने बताया कि यह हड़ताल अनुचित बैंकिंग सुधार के उपाय के विरोध में किया जा रहा है.

बैंक हड़ताल की मांगें-
उन्होंने कहा कि आईडीबीआई बैंक का निजीकरण करने और सरकार द्वारा अपनी पूंजी को 49 फीसदी से कम करने, सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का एकीकरण, लेकिन निजी बैंकों का विस्तार, कॉरपोरेट समूहों को बैंकिंग लाइसेंस देने, फंसे हुए बड़े कर्जो की वसूली के लिए अपर्याप्त कदम उठाने और बकाएदारों और अन्य को रियायतें देने के खिलाफ यह हड़ताल आयोजित की जा रही है.

उन्होंने कहा, “हम मांग करते हैं जानबूझकर कर्ज नहीं चुकानेवालों को आपराधिक मुकदमा चलाया जाए और उन्हें दंडित किया जाए.”

वेंकटाचलम ने कहा कि बकाएदार जानबूझकर कुल 58,792 करोड़ रुपया का कर्ज लौटा नहीं रहे हैं.

उन्होंने कहा कि सरकारी बैंकों का 31 मार्च 2016 तक कर्ज के रूप में फंसी हुई रकम 5,39,995 करोड़ रुपये है.

उन्होंने कहा, “लेकिन सरकार और आरबीआई उनके खिलाफ कड़े कदम नहीं उठा रही है. यहां तक बकाएदारों के नाम तक सार्वजनिक नहीं किए जा रहे हैं.”

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