प्रसंगवशराष्ट्र

ज़हरखुरानी

कनक तिवारी
लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा पर देश में ज़हर फैलाने का आरोप मढ़ा है. राजनीति को लेकर सोनिया के मन में एक अरसे से गहरी तल्खी दिखाई पड़ती रही है. वे नहीं चाहती थीं कि पति राजीव गांधी हवाई पायलेट की नौकरी छोड़कर राजनीति के पचड़े में फंसें.

छोटे भाई संजय गांधी को अलबत्ता हवाई जहाज उड़ाने के साथ साथ राजनीति के उड़नखटोले में बैठना अपनी मां इन्दिरा गांधी को मदद देने की वजह से अच्छा लगा था. अजीब संयोग है कि हवाई कुंलाचे भरने वाले युवा नेताओं राजीव गांधी, संजय गांधी, माधवराव सिंधिया और राजेश पायलेट वगैरह की मौत दुर्घटनाओं की वजह से हुई. संजय के असामयिक निधन के कारण राजीव को कांग्रेस महासचिव बनना पड़ा.

उनकी मौत के बाद भी सोनिया ने राजनीति से दूरी बना रखी थी. प्रधानमंत्री नरसिंह राव और कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने पार्टी का इतना कबाड़ा कर दिया था कि सोनिया को कार्यकर्ताओं के आग्रह के कारण पार्टी और बाद में यू.पी.ए. तथा देश की बागडोर सम्हालनी पड़ी. पुत्र राहुल गांधी को भी उन्होंने यही समझा रखा है कि राजनीति एक ज़हर है. उससे बचना हर सत्तानशीन के लिए सावधानी और जोखिम का काम है. यही ज़हर उन्होंने भाजपा के चरित्र, कर्म और वाणी में भी देखा.

नरेन्द्र मोदी ने भी पलटवार करते हुए कहा कि ज़हर तो कांग्रेस के पेट में है. वह पूरे देश में फैल गया है. मोदी के साथ दिक्कत यह है कि वे भाषा का सही उपयोग नहीं जानते. पेट किसी भी व्यक्ति का जन्मजात अंग होता है. कांग्रेस का पेट 28 दिसंबर 1885 को बन गया था. उसके पेट में फीरोज़शाह मेहता, देशबंधु एंड्रूज़, ऐनी बेसेन्ट, लोकमान्य तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, चित्तरंजन दास, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, विपिनचंद्र पॉल, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस वगैरह का अमृत है.

यह ज़हर कांग्रेस में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का खात्मा करने की कोशिशों में कुछ न कुछ आया होगा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में अमेरिका और यूरोप की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ज़हर भारतीय अर्थव्यवस्था की शिराओं में बह रहा है. मुसलमानों की रक्षा में कई बार कांग्रेस असफल हुई है. इसलिए कट्टर हिंदूवादिता और कठमुल्ला मुसलमानों के बीच ज़हर की पिचकारियों से खून की होली खेली जा रही है.

गांधी, इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी ने अपनी छातियों पर ज़हर की गोलियां झेली हैं. यदि दोनों बड़ी पार्टियां देश में ज़हरखुरानी ही करती रही हैं तो वह सारा ज़हर क्या जनता के जिस्म और आत्मा में डाला नहीं गया है? यह तो इस महान देश की जनता है जो भगवान शिव की तरह नेताओं द्वारा पैदा किए गए ज़हर को नीलकंठ की तरह पचाती जा रही है. कहते हैं आज़ादी के समुद्र मंथन से भी अमृत और ज़हर दोनों निकले थे. जो सिपेहसालार आज़ादी के लिए लड़े इतिहास का अमृत उनके खाते में है. जो कायर दुम दबाकर छिपे रहे उनके हिस्से का ज़हर देश क्यों चाटे!

* उसने कहा है-5

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