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पुरुष घर में रहे तो दोगुनी हो गई घरेलू हिंसा

रायपुर | सुनील शर्मा : कोरोना ने सबसे ज्यादा असर आधी आबादी यानी महिलाओं पर डाला. इस दौरान घरेलू हिंसा दोगुनी हो गई. किसी के पति ने हाथ तोड़ दिया तो कोई महिला अपने पति से तंग आकर दुनिया से ही चल बसी. दहेज और बच्चा नहीं होने के पुराने मामले लॉकडाउन में फिर खुल गए और पुरुष के साथ ही उनके परिवार के लोगों ने अपना खाली समय महिला को प्रताड़ित करते हुए बिताया.

अब बिलासपुर की 24 साल की रागिनी की ही कहानी ले लीजिए. उनका विवाह दो साल पहले हुआ था. उन्हें कोई बच्चा नहीं था. पति इस बात को लेकर रागिनी को प्रताड़ित करने लगा. साथ ही वह अपनी पत्नी पर शक भी करता था.

उसके पास दो गाड़ियां थी, जिसे वह किराए पर देता था. खुद भी ड्राइविंग करता था. इससे हर माह 50 हजार रुपए तक कमा लेता. पर लॉकडाउन में बुकिंग बंद हो गई. वह घर पर रहने लगा. वह शराब पीने लगा था. अक्सर बात-बात पर रागिनी की पिटाई करने लगा. अप्रैल से लेकर कुछ दिनों पहले तक रागिनी सब बर्दाश्त करती रहीं. पर एक दिन इस प्रताड़ना के सामने वह हार गईं और उन्होंने फांसी लगा कर जान दे दी.

30 साल की लता के पति का काम कोविड में छूट गया. वह घर पर ही रहने लगा. वैसे तो शुरू से ही उसका लता से झगड़ा होता था पर कोरोना काल में यह और बढ़ गया. एक दिन उसने लता को इतना मारा कि उसका एक हाथ टूट गया. उसने एक सामाजिक संगठन के लोगों से किसी तरह संपर्क किया. सामाजिक संगठन के लोग उसे प्राइवेट हॉस्पिटल लेकर गए. पति ने हॉस्पिटल का खर्च उठाने से भी इनकार कर दिया. ऐसे में लता के भाई ने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखकर रुपए दिए. हॉस्पिटल ने कुछ छूट भी दी.

प्याज नहीं मिला तो मारपीट

दुर्ग जिले के खुर्सीपार पुलिस को एक चौंकाने वाला मामला पता चला. तब लॉकडाउन को एक माह हुए थे. 30 अप्रैल को थाने में एक युवती ने फोन कर शिकायत की कि छोटे भाई ने उनके साथ मारपीट की है. चिकन पकाने के लिए उससे प्याज की मांग की. प्याज कम होने पर उसने देने से मना कर दिया. इस बात पर छोटे भाई ने उसके साथ मारपीट की और 1 मई को उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया. रागिनी, लता या भाई से पीटने वाली महिला ही नहीं ऐसी कई महिलाएं है, जिन्हें कोविड-19 के दौरान घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा.

तरह-तरह की हिंसा और प्रताड़ना में यह तथ्य बार-बार रेखांकित हो कर सामने आता है कि हम एक पितृसत्तामक समाज में रहते हैं. लॉकडाउन हो या फिर अनलॉक, इस दौरान ज्यादातर समय पुरुष घरों में रहे और घरेलू हिंसा में आश्यर्चजनक रूप से वृद्धि हुई. सीधे शब्दों में कहे तो घरों में रहते हुए पुरुषों ने अपनी पत्नियों पर पहले की तुलना में कहीं अधिक अत्याचार किए.

अब अकेले रायपुर की बात करें तो यहां लॉकडाउन के पहले जनवरी व फरवरी में जहां 40 शिकायतें महिलाओं की तरफ से घरेलू हिंसा की दर्ज कराई गई, वहीं लॉकडाउन में 60 से 65 मामले हर माह दर्ज किए जाने जाने लगे. लगभग यहीं आंकड़ा बिलासपुर जिले का भी रहा.

हालांकि राज्य की महिला आयोग में शिकायतें पहले की तुलना में कम हो गईं. लेकिन इसका कारण केवल इतना भर था कि आयोग में ज्यादातार शिकायतें डाक से आती हैं और लॉकडाउन के दौरान डाक की व्यवस्था दुरुस्त नहीं थी.

Copy of छत्तीसगढ़ में ओबीसी जाति के हेड काउंट के आंकड़े-1

अहीर, ब्रजवासी, गवली गोली, जादव, यादव बरगाही, बरगाह, ठेठवार, राउत, गोवारी, गवारी, ग्वारा, गोवारी, महाकुल, राउत, महकुल, गोप, ग्वाली, लिंगायत, गोपाल, यादव, राऊत, ग्वाला, गहिरा, गौली22,67,500
असारा, असाड़ा10,296
बैरागी, वैष्णव, थनापति76422
बंजारा, बंजारी, मथुरा, नायक, नायकड़ा, धरिया, लभाना, लबाना, लामने63,112
बरई, तमोती, तम्बोली, कुमावट, कुमावत, वारई, बरई, चौरसिया44,598
बढ़ई, सुतार, दवेज, कुन्देर (विश्वकर्मा)54,985
बारी11108
वसुदेव, वसुदेवा, वासुदेव, वासुदेवा, हरबोला, कापड़या, कापड़ी, गोंधली, थारवार22814
भड़भूंजा, भुंजवा, भुर्जी, धुरी, धूरी22402
भाट, चारण,सुतिया, सालवी, राव, जनमालोंधी, जसोंधी, मरूसोनिया18896
छीपा, भावसार, नीलगर, जीनगर, निराली, रंगारी, मनधाव10506
ढीमर भोई, कहार, कहरा, धीवर, मल्लाह, नावड़ा, तुरहा, केवट, केंवट, कश्यप, निषाद, रायकवार, बाथम, कीर, ब्रितिया, वितिया, सिंगरहा, जालारी, जालारनलु (बस्तर, दक्षिण बस्तर, दंतेवाड़ा, उत्तर बस्तर कांकेर, बीजापुर, नारायणपुर, कोंडागांव और सुकमा ज़िले में) सोंधिया11,91,811
पंवार, पोवार, भोयर, भोयार13792
भुर्तिया, भुतिया, भोरथिया, भोरतिया4537
भोपा, मानभाव1747
भटियारा, हलवाई, गुरिया, गुड़िया, गुडीया16359
चुनकर, चुनगर, कुलवंधया, राजगीर3839
चितारी1577
दर्जी, छीपी, छिपी, शिपी, मावी, (नामदेव)16626
धोबी, बट्ठी, बरेठा, रजक, बरेठ3,16,953
मीना (रावत) देशवाली, मेवाती, मीणा22,754
किरार, किराड़, धाकड़37,346
गंडरिया, धनगर, कुरमार, हटगर, हटकर, हाटकार, गाड़री, धारिया, धोषी, गड़रिया, गारी, गायरी, पाल, बघेले, गड़ेरी11,3,386
कड़ेरे, धुनकर, धुनिया, धनका, कोडार5802
कोष्टा, कोष्टी, देवांगन, कोष्ठा, माला, पद्मशाली, साली, सुतसाली, सलेवार, सालवी, देवांग, जन्द्रा, कोस्काटी, कोश्काटी, लिंगायत, गढ़वाल, गढ़ेवाल, गरेवार, गरावर, डुकर, कोल्हाटी3,20,033
धोली, डफाली, डफली, ढोली, दमामी, गुरव4201
गुसाई, गोस्वामी, गोसाई43646
गूजर, गुर्जर7581

छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग के सहायक संचालक अभय कुमार देवांगन के मुताबिक आमतौर पर सामान्य दिनों में आयोग को रोजाना ऑनलाइन व डॉक मिलाकर 70-80 शिकायती आवेदन मिलते थे. इनमें आधे से ज्यादा दहेज व घरेलू हिंसा के होते थे. 40-50 शिकायतों पर प्रकरण दर्ज कर थानों व जिले के संरक्षण अधिकारियों को कार्रवाई के लिए कहा जाता था. पर आयोग को प्राप्त होने वाले आवेदन की संख्या करीब आधी रह गई है. हो सकता है कि लॉकडाउन के दौरान डाक से आवेदन नहीं पहुंच पा रहा हो.

हालांकि देश भर की मीडिया में आई इस दौर की रिपोर्ट और राष्ट्रीय महिला आयोग के हिस्से के आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं.

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो लाकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले 95 फीसदी तक बढ़ गए. देशव्यापी बंद से पहले और बाद के 25 दिनों में देश के कई शहरों से मिली शिकायतों को आधार मानते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग ने यह दावा किया है कि घरेलू हिंसा के मामले दोगुने बढ़ गए हैं.

आयोग ने इस साल 27 फरवरी से 22 मार्च के बीच और लॉकडाउन के दौरान 23 मार्च से 16 अप्रैल के बीच मिली शिकायतों की तुलना के बाद के आंकड़ों के आधार पर यह दावा किया. इसके मुताबिक, बंद से पहले आयोग को घरेलू हिंसा की 123 शिकायतें मिली थीं जबकि लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन व अन्य माध्यम से घरेलू उत्पीडऩ के 239 मामले दर्ज कराए गए.

कई मामलों में शिकायतें इसलिये भी दर्ज नहीं हो पाईं क्योंकि आरोपी पुरुष पूरे समय घर पर ही थे.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अधिवक्ता व समाजसेवी प्रियंका शुक्ला बताती हैं कि 1 मई की शाम को उनके पास फोन आया कि मोपका के अरपा विहार निवासी एक सरकारी शिक्षक अपनी पत्नी को पीट रहा है. पत्नी को खून की उल्टियां हो रही है. जब वे उनके घर पहुंचे तो पता चला कि दहेज और बच्चा न होने का ताना देकर पति और उसके परिवार वाले महिला को तंग करते थे, लेकिन लॉकडाउन में घर में ज्यादा समय तक रहने के कारण ये हिंसा और भी बढ़ गई. मामले की शिकायत पुलिस थाने में की गई.

छत्तीसगढ़ राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ.किरणमीय नायक बताती है कि लॉकडाउन में कई बार मामले हाइपोथेटिकल भी होते हैं. इसलिए हम पूरी जांच पड़ताल के बाद ही मामला दर्ज कर रहे हैं. वह कहती है कि रोजाना 50 से 100 मामले अब आ रहे हैं, इनमें ज्यादातार घरेलू हिंसा के ही है. उन्होंने कहा कि यह भी देखना पड़ता है कि हिंसा का दायरा क्या है. हम पुलिस के सभी मामलों में दखल नहीं देते. हमारे पास सीधे शिकायत आने पर रुचि लेते हैं. इसके अलावा कुछ अन्य मामले भी संज्ञान में लेते हैं. पहले के 550 मामले भी पेंडिंग हैं. कुछ नए और कुछ पुराने केस का निराकरण कर रहे हैं.

लॉकडाउन और शराब का असर

निम्न वर्ग में घरेलू हिंसा की शिकायतें ज्यादा रहती हैं, पर लॉकडाउन के दौरान शिकायतें न के बराबर रही क्योंकि दो कारण से हिंसा होती थी, पहली शराब और दूसरा घर से बाहर काम करने वाली महिलाओं पर पति दूसरे के साथ संबंध होने का आरोप लगाकर मारपीट करता था. लॉकडाउन में न शराब मिली और न ही महिला घर से बाहर गई.

करीब 40 दिनों तक शराब दुकानें बंद रही. चोरी छिपे शराब बिकी पर वह एक या दो फीसदी की पहुंच में ही रही. पर जैसे ही दुकानें खुली, अचानक घरेलू हिंसा के मामले बढ़ गए.

राज्य महिला आयोग की पूर्व सदस्य ममता साहू का कहना है कि राज्य में निम्न वर्गीय परिवारों में घरेलू हिंसा के मामलों में कमी का कारण करीब 40 दिन तक राज्य में शराब नहीं मिल पाना रहा. जब तक शराब दुकानें बंद थी, तब तक लोग शांति से अपना जीवन बिता रहे थे. जबकि अब पहले जैसा ही हाल होने लगा है. धरमपुरा में एक महिला के पति ने शराब दुकान खुलने के बाद पीने के लिए घर बर्तन बेच दिए. इसलिए मुझे लगता है कि शिकायतों में कमी आने के पीछे डाक से भी ज्यादा बड़ा कारण शराब दुकानें बंद होना रहा.

राज्यपाल ने घरेलू हिंसा पर मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके कई मोर्चों पर बेहद सक्रिय हैं. उन्होंने घरेलू हिंसा सहित अन्य घटनाएं बढ़ने को लेकर पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा जो कि काफी चर्चा में रहा.

दरअसल कोरोना काल में शराब दुकानें खोले जाने के बाद जब घरेलू हिंसा सहित अन्य दुर्घटनाएं होने लगी तब उन्होंने एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि लॉकडाउन के दौरान शराब पीने से हो रहे अपराधों पर नियंत्रण करना आवश्यक है.

राज्यपाल ने इस संबंध में मिले कई ज्ञापनों का उल्लेख करते हुए आग्रह किया कि लॉकडाउन के दौरान शराब के कारण घरेलू हिंसा एवं दुर्घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है, जिसे प्रभावी तरीके से रोके जाने की आवश्यकता है. इस संबंध में शासन स्तर पर उचित नीतिगत निर्णय लिया जाए, ताकि लॉकडाउन के दौरान मद्यपान से उत्पन्न आपराधिक गतिविधियों एवं दुर्घटनाओं पर नियंत्रण किया जा सके.

राज्यपाल की चिंता से समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में स्थिति कितनी भयावह है. यहां यह बताना भी जरूरी हो जाता है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने अपने घोषणा पत्र में शराबबंदी की बात कही थी. अब शराबबंदी को लेकर मीडिया या विपक्ष द्वारा सवाल पूछे जाने पर नेता कहते हैं कि अभी तो साढ़े तीन साल बाकी है. धीरे-धीरे सभी घोषणाओं को पूरा करेंगे.

पुलिस का चुप्पी तोड़ो अभियान

लॉकडाउन के 36 दिनों में रायपुर पुलिस के पास 60 से ज्यादा शिकायतें घरेलू हिंसा की आईं. कुछ शिकायतें तो ऐसी हैं जिनमें महिलाओं ने स्वीकार किया है कि वे कई बार चाहकर भी पुलिस तक नहीं पहुंच पाईं. पुलिस विभाग ने सोशल मीडिया पर ‘चुप्पी तोड़ो अभियान’ शुरू करने की जानकारी देते हुए महिलाओं को भरोसा दिलाया कि उन्हें डरने या घबराने की ज़रुरत नहीं.

पुलिस के अनुसार मुसीबत के समय वे सिर्फ एक मैसेज या कॉल पुलिस को करें, 10 मिनट के अंदर पुलिस उनके घर पहुंचेगी. शिकायत गंभीर मिलने पर ऑन स्पॉट केस दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार किया जाएगा. अभियान में डीएसपी से एसआई रैंक की महिला अफसरों को रखा गया. ताकि पीड़ित महिला अपनी बात उनके सामने खुलकर रख सके.

कहा गया कि टेलीफोन नंबर 0771-4247110 पर कॉल कर या 94791-90167 और 94791-91250 वाट्सएप पर पीड़ा बता सकती है. 2018 से लेकर 2020 मार्च तक 1500 घरेलू हिंसा की शिकायतें आई थी. इन महिलाओं से भी संपर्क करने का प्रयास करने की बात कही गई.

पहले से ही स्थिति भयावह
2016 से 2019 के बीच तीन हजार मामले

निर्भया फंड के तहत बनी महिला हेल्पलाइन (181) पर आई शिकायतों से पता चला है कि 25 जून 2016 से 17 जनवरी 2019 के बीच कुल 5197 महिलाओं ने अपनी शिकायत दर्ज कराई, जिनमें सबसे ज्यादा 2803 मामले घरेलू हिंसा के रहे.

महिला हेल्प लाइन की प्रबंधक मनीषा तिवारी बताती हैं कि संकट में फंसी महिलाओं की मदद के लिए केंद्र सरकार ने महिला हेल्पलाइन की शुरूआत निर्भया फंड से की है. यह शिकायत दर्ज करने के साथ ही महिलाओं को कानूनी सहायता भी मुहैया कराती है. घरेलू प्रताड़ना के मामलों में पुलिस का रवैया ज्यादातर निराशाजनक रहता है. ऐसे मामलों में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय महिलाओं को ही समझाने का प्रयास किया जाता है.

उनका दावा है कि घरेलू हिंसा के मामलों में कार्रवाई के दौरान पुलिस जरूरी नियमों का पालन नहीं करती और ऐसे में ज्यादातर महिलाएं हार मान जाती हैं.

(लाडली मीडिया फेलोशिप के तहत किए गए अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट)

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